बार-बार हृदय देखे नयन वह बसा है
गबरू जवान यौवन धर्मेंद्र का नशा है
अपनी ही मस्तियों से बस्ती को हंसाए
सत्तर दशक की फ़िल्म की यही दशा है
स्वभाविक बदन सौष्ठव हृदय ही घड़कनें
धर्मेंद्र पुरुष पूर्ण थे उन्मुक्तता के कहकहे
शायरी कवित्व में उनके लगे फलसफा है
सत्तर दशक की फ़िल्म की यही दशा है
स्वप्न सुंदरी जिसका कई दशक रहा दीवाना
धर्मेंद्र और हेमा का था मुग्धित नया तराना
नृत्य इनका कब गीत-संगीत बीच फंसा है
सत्तर दशक की फ़िल्म की यही दशा है
अलमस्त हमेशा व्यस्त सब कुछ करते थे व्यक्त
गठीले बदन भीतर कवि हृदय हरदम आसक्त
एक बांकपन से जीवन में मथा कई नशा है
सत्तर दशक की फ़िल्म की यही दशा है।
धीरेन्द्र सिंगज
24.11.2025
19.16

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