सोमवार, 10 मार्च 2025

ऑनलाइन रिश्ता

 कोई भाई, कोई अंकल, गुरु कोई प्रियतम

ऑनलाइन क्या हुआ रिश्तों का यह चलन


कितनी आसानी से जुड़ जाते हैं यहां लोग

व्यक्तित्व न रखें एकल हो रिश्ते का भोग

संस्कार है या संगत या असुरक्षा का दलन

ऑनलाइन क्या हुआ रिश्तों का यह चलन


व्यक्ति कहीं एकल निर्द्वंद्व नहीं है दिखता

उपनाम या विशेषण में रहता गुमसुम सिंकता

सब शीत लगें भीतर अकेले में प्रगति गलन

ऑनलाइन क्या हुआ रिश्तों का यह चलन


एक भय है समाज में हर पग पर जोखिम

व्यक्ति मिलता नहीं सम्पूर्ण खोजें दैनंदिन

स्वतंत्र व्यक्तित्व उभारे नव ऊर्जा का दहन

ऑनलाइन क्या हुआ रिश्तों का यह चलन।


धीरेन्द्र सिंह

11.03.2025

05.44

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