कविताएं अब
उभरती नहीं हैं
लिखी जाती हैं
शब्दों की भीड़ से,
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
दिनभर कविताएं
फुदकती रहीं
कभी यह समूह तो
कभी वह ग्रुप,
मौलिकता थी मद्धम
या फिर चुप,
नारी शक्ति है, ऊर्जा है
नारी भक्ति है, दुर्गा है
नारी जग का पोषण है
होता नारी का शोषण है,
प्रत्येक वर्ष इसी के इर्द-गिर्द
घूमती हैं कविताएं,
जबरदस्ती न लिखें कविता
क्योंकि चीखती है वह
रचनाकार क्यों सताए,
भला कविता को
कैसे बताएं,
जब भाव घुमड़ने लगें
अभिव्यक्ति को उमड़ने लगें
तब शब्दों से सजाएं,
कविता लिखनी है सोचकर
शब्द नहीं भटकाएं।
धीरेन्द्र सिंह
09.03.2025आ
07.32
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