सोमवार, 3 मार्च 2025

साड़ी

 समय उपहार मिलते चली गाड़ी

जैसे पहन खिल उठीं नई साड़ी


दृष्टि चौंक गई हृदय भी मुस्काया

रंग साड़ी का बैठने का अंदाज भाया

शालीन मुद्रा में बैठी प्रभाव जमींदारी

जैसे पहन खिल उठीं नई साड़ी


आब व्यक्तित्व या मुग्धित आकर्षण

रंग भर तरंग उमंग भर मन दर्पण

निगाहें उनकी ओर कई तिरछी आड़ी

जैसे पहन खिल उठीं नई साड़ी


वस्त्र और रंग पहनने की कला

जिसने समझा मन ही मन फला

ढाल कर खुद में बन रहीं अनाड़ी

जैसे पहन खिल उठीं नई साड़ी।


धीरेन्द्र सिंह

03.03.2025

23.40

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