समय उपहार मिलते चली गाड़ी
जैसे पहन खिल उठीं नई साड़ी
दृष्टि चौंक गई हृदय भी मुस्काया
रंग साड़ी का बैठने का अंदाज भाया
शालीन मुद्रा में बैठी प्रभाव जमींदारी
जैसे पहन खिल उठीं नई साड़ी
आब व्यक्तित्व या मुग्धित आकर्षण
रंग भर तरंग उमंग भर मन दर्पण
निगाहें उनकी ओर कई तिरछी आड़ी
जैसे पहन खिल उठीं नई साड़ी
वस्त्र और रंग पहनने की कला
जिसने समझा मन ही मन फला
ढाल कर खुद में बन रहीं अनाड़ी
जैसे पहन खिल उठीं नई साड़ी।
धीरेन्द्र सिंह
03.03.2025
23.40
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