रविवार, 2 मार्च 2025

इश्क़

 तिश्नगी तूल देती रहती हरदम

जिंदगी मांगती रहती है हमदम

कई कदम बढ़ चुके आपकी ओर

आप आशियाँ पर फहराते परचम


मेरे झंडे का एहतराम करो बोलें

एक तलाश जोर मिले हमकदम

इंसानियत बहु रंग रही अब कैसे

तपिश से भर उठी है हर शबनम


खुद को बांधना भी सामाजिक बात

बंधनों में मुस्कराता बिलता ज़मज़म

बस एक दौर हैं इम्तिहान पाकीज़गी

सच हो गयी तो हो उद्घोष बमबम


आप खुद की सीमाओं में कैद हैं

मुनासिब नहीं बयां कर दें खुशफहम

यह दौर टूर की कर रहा है समीक्षा

इश्क़ की बात करें हम कुछ सहम।


धीरेन्द्र सिंह

02.03.2025

23.06

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