बाबा रे क्या गज़ब करते हो
बातों को कैसे लिख देते हो
अहा !
वाह !
मैं तो न कहती, बोल गईं यूं वह
मन का क्या वह जाता वहीं बह
ओहो !
रहने दो !
हा हा हा कर फिर खिलखिलाई
इसे कहते हैं जलाना दियासलाई
हम्म !
हाँ सो तो है !
बात करने से पहले सोचना होगा
पता नहीं क्या लिखो देखना होगा
अरे, गई !
बात रह गई !
आती है बतियाती और फुर्र हो जाती
ऐसे आकर रचना मुझमें है भर जाती।
धीरेन्द्र सिंह
15.03.2025
20.16
वाह
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