शनिवार, 15 मार्च 2025

बाबा रे

 बाबा रे क्या गज़ब करते हो

बातों को कैसे लिख देते हो


अहा !

वाह !

मैं तो न कहती, बोल गईं यूं वह

मन का क्या वह जाता वहीं बह


ओहो !

रहने दो !

हा हा हा कर फिर खिलखिलाई

इसे कहते हैं जलाना दियासलाई


हम्म !

हाँ सो तो है !

बात करने से पहले सोचना होगा

पता नहीं क्या लिखो देखना होगा


अरे, गई !

बात रह गई !

आती है बतियाती और फुर्र हो जाती

ऐसे आकर रचना मुझमें है भर जाती।


धीरेन्द्र सिंह

15.03.2025

20.16



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