एक मीठी-मीठी मद्धम-मद्धम
सांस तुम्हारी आस दुलारे
होली आई अंग रंग लाई
उडें गुलाल विश्वास पुकारे
छू लेता रंग लगे छू गयी वफ़ा
मन अकुलाया मन कौन बुहारे
सांसे जिसको बो रहीं मद्धम
छूटा साथ रहा बंधा चौबारे
साथ नहीं पर लौट आती सांसे
साँसों से मिल गाए मन ढारे
बाग-बगीचे सी साँस सुगंध
क्यों लगता पी लिया महुवा रे
इतनी छूट कहां पर मिल पाए
हाँथ गुलाल उड़ि कपोल सँवारे
सांस-सांस बस अहसास पास
झांक-झांक रंग जमा उन द्वारे।
धीरेन्द्र सिंह
10.03.2025
13.05
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