रेत के टीले पर कामनाओं का है महल
अजूबे शिल्पकार की है अभिनव पहल
कहां अब परम्पराओं की हो अनदेखी
विगत सृष्टि की अदहन हो शिलालेखी
सुगंध फिर वही ऊर्जाएं दिख रहीं धवल
अजूबे शिल्पकार की है अभिनव पहल
रेत ढह जाता है निर्माण का है विरोधी
रेत को संवारने की हो रही थी अनदेखी
क्या किया योग मुस्कराता खड़ा महल
अजूबे शिल्पकार की है अभिनव पहल
विवेक को मिले जब सकारात्मक ऊर्जा
प्यार नवः रूप खिले फहर आँचल कुर्ता
नयन भर स्वप्न रंगोली रच रही चपल
अजूबे शिल्पकार की है अभिनव पहल।
धीरेन्द्र सिंह
02.03.2025
05.25
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