शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025

दुलार है

 वह अनुभूतियों की रंगीन गुबार है

हसरतें खिल जाएं ऐसी वह दुलार है


ऑनलाइन ही हो पाती हैं बस बातें

मैं खुली किताब ध्यान से वह बाचें

उसकी मर्यादाएं, लज्जा बेशुमार है

हसरतें खिल जाएं ऐसी वह दुलार है


उड़ ही जाता हूँ अपने रचित व्योम मेँ

देखती रहती है ठहरी वह अपने खेम में

संग उड़ जाए अविरल प्रणय पुकार है

हसरतें खिल जाएं ऐसी वह दुलार है


कितनी महीन सोचती नारी वह जतलाए

जब भी होती बातें मन मेरा जगमगाए

ऑनलाइन ही हमारे हृदयों की झंकार है

हसरतें खिल जाएं ऐसी वह दुलार है।


धीरेन्द्र सिंह

01.03.2025

04.31



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