आधे-अधूरे ही रह गए होंगे
बेबसी को भी सह गए होंगे
एक जीवन को जीनेवाले ऐसे
एक तिनके सा बह गए होंगे
समय थपेड़ों सा बचना मुश्किल
हासिल कुछ तो कर गए होंगे
पुराने छूट गए टूटकर पड़े हैं
हृदय जब मुस्कराया नए होंगे
जिंदगी करवटों का बिस्तर है
कुछ सोए कुछ रच गए होंगे
सीमित दायरा होता है सभी का
कुछ रोये कुछ हंस गए होंगे
दौर स्वभाव है दौड़ते रहना
क्या मिला जो थक गए होंगे
तह तक पहुंचे उनका कहन अलग
शेष तो सामयिक बुलबुले होंगे।
धीरेन्द्र सिंह
06.25
08.02.2025
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