सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

तन्हाई

 गम की परछाइयाँ, साया बनी हैं

मन की गहराईयां, माया बनी हैं

तन्हाई का भी निराला सा अदब

नभ में सिसकियां, छाया बनी हैं


जोड़ डाला कई से पता ना चला

स्व डूबा झुरमुटों की दया बड़ी है

अपने से अलग हो जाता है ऐसे

तन्हाई पूछती कहां संख्या खड़ी है


तन्हाई देती है गहनतम तन्मयता

तन्हाई भेदी है, निजता घनी है

तन्हाई में सिसकियां एक अवसाद

तन्हाई खेती है, शुभता धनी है।


धीरेन्द्र सिंह

10.02.2025

12.47

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