उठे मन में भाव प्यार तो मैं प्यार लिखूं
शब्दों में ढालकर अपना मैं वही यार लिखूं
जलधार की तरह अब तो प्यार रह गया
सब कहते हैं स्थिर पर है प्यार बह गया
सत्य को छिपाकर क्यों सुखद श्रृंगार लिखूं
शब्दों में ढालकर अपना मैं वही यार
लिखूं
प्रवाह प्यार के एक अंग के हैं जो पक्षधर
कभी आंकी है चंचलता हिमखंड की जीभर
बहुत भीतर सिरा ऊपर भव्यता क्यों यार लिखूं
शब्दों में ढालकर अपना मैं वही यार लिखूं
मेरा यार मेरे हृदय की है बहुरंगी तरंगिनी
उसी धुन पर सजाता हूँ मेरी वही कामिनी
कथ्य लिखूं सत्य लिखूं या हृदय झंकार लिखूं
शब्दों में ढालकर अपना मैं वही यार लिखूं।
धीरेन्द्र सिंह
17.01.2025
08.19
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