अदहन सी भक्ति आसक्ति सुलगन बन जाए
दावानल उन्माद युक्ति मुक्ति ओर धुन लाए
ठिठुरन में दर्पण संस्कृति का जोर प्रत्यावर्तन
महाकुम्भ शंभु सा बहुरूप समूह गुण लाए
आराधना की साधना के कामना जनित रूप
सनातन की गहनता है कुछ गुह्यता भी सबूत
एक ओर आकर्षण दूजी ओर चुम्बक बुलाए
साधु-संत और महन्त अनंत सहज लुभाएं
त्रिवेणी की वेणी बन अपार भक्त की हुंकार
डुबकियां की झलकियां लगे प्रार्थना स्वीकार
बिना किसी शोर सहज सब अखाड़े गुनगुनाएं
भव्य-दिव्य कृतित्व आस्था लौ को जगमगाएं।
धीरेन्द्र सिंह
21.01.2025
17.14
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