मंगलवार, 21 जनवरी 2025

महाकुम्भ

 अदहन सी भक्ति आसक्ति सुलगन बन जाए

दावानल उन्माद युक्ति मुक्ति ओर धुन लाए

ठिठुरन में दर्पण संस्कृति का जोर प्रत्यावर्तन

महाकुम्भ शंभु सा बहुरूप समूह गुण लाए


आराधना की साधना के कामना जनित रूप

सनातन की गहनता है कुछ गुह्यता भी सबूत

एक ओर आकर्षण दूजी ओर चुम्बक बुलाए

साधु-संत और महन्त अनंत सहज लुभाएं


त्रिवेणी की वेणी बन अपार भक्त की हुंकार

डुबकियां की झलकियां लगे प्रार्थना स्वीकार

बिना किसी शोर सहज सब अखाड़े गुनगुनाएं

भव्य-दिव्य कृतित्व आस्था लौ को जगमगाएं।


धीरेन्द्र सिंह

21.01.2025

17.14



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