शनिवार, 18 जनवरी 2025

तुम ही

 मुझे तुम भुला दो या मुझको बुला लो

यह झूले सा जीवन अब भाता नहीं है

यह पढ़कर मुस्कराकर यही फिर कहोगी

हृदय वैसे पढ़ना मुझको आता नहीं है


गज़ब की हवा महक चुराई है तुमसे अभी

फिर न कहना कोई यह खता तो नहीं है

हुस्न की अपनो है कई पेंचीदिंगिया अजीब

इश्क़ रहता है जलता कहें पता ही नहीं है


सभी हैं वयस्क नित जिंदगी के नए चितेरे

कोई बात है उनको घेरे वह नई तो नहीं है

काश वो आ जाएं लता सा लिपट गुनगुनाएं

जिंदगी है यही और कुछ बाकी तो नहीं है।


धीरेन्द्र सिंह

18.01.2025

21.16

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