मुझे तुम भुला दो या मुझको बुला लो
यह झूले सा जीवन अब भाता नहीं है
यह पढ़कर मुस्कराकर यही फिर कहोगी
हृदय वैसे पढ़ना मुझको आता नहीं है
गज़ब की हवा महक चुराई है तुमसे अभी
फिर न कहना कोई यह खता तो नहीं है
हुस्न की अपनो है कई पेंचीदिंगिया अजीब
इश्क़ रहता है जलता कहें पता ही नहीं है
सभी हैं वयस्क नित जिंदगी के नए चितेरे
कोई बात है उनको घेरे वह नई तो नहीं है
काश वो आ जाएं लता सा लिपट गुनगुनाएं
जिंदगी है यही और कुछ बाकी तो नहीं है।
धीरेन्द्र सिंह
18.01.2025
21.16
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