हाथ असंख्य बर्तनों के काज हो गए
कहने लगे घर कितने सरताज हो गए
दीवारों को गढ़कर मनपसंद रूप सजाए
हर गूंज हो गर्वित खूब दीप धूप जलाए
बजती रही घंटियां द्वार अंदाज हो गए
कहने लगे घर कितने सरताज हो गए
रसोई हो पूर्व दक्षिण वास्तु की है सलाह
भोजन की ना कमी दीवारें रहीं है कराह
सब कुछ पाकर कैसे यह अनजान हो गए
कहने लगे घर कितने सरताज हो गए
घर में चार दीवारें वर्चस्वता की ना तकरार
घर के सदस्यों में हो अहं की नित हुंकार
पारिवारिक सर्जना के कई नव ताज हो गए
कहने लगे घर कितने सरताज हो गए।
धीरेन्द्र सिंह
16.01.2025
19.16
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें