रविवार, 12 जनवरी 2025

एक मर्म

 बहुत बोझ लगती हैं अब तो किताबें

नयन आपके भी तो कहते बहुत हैं

पन्ने पलटने से मिलते वही सब कुछ

जो आपकी नजरों से बिखरते बहुत हैं


जैसे रुपए से सब कुछ है मिलता नहीं

प्रस्तुतियां भी भरमाती पुस्तकें बहुत हैं

आप ही हैं भरोसा हमें परोसा किए जो 

आपकी भी दुनिया में हादसे बहुत हैं


छोड़िए किन पचड़ों में हम घिर गए

बैठिए आपके नयन में आसरे बहुत हैं

होंठ, जिह्वा, अदाएं हैं युग को सताए

एक मर्म मातृत्व का पुकारे बहुत है।


धीरेन्द्र सिंह

12.01.2025

13.58



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