शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

उलाहना

 वैश्विक हिंदी दिवस पर मिला उनका संदेसा

थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा


क्या करता, क्या कहता, उन्होंने ही था रोका

कुछ व्यस्तता की बातकर चैट बीच था टोका

सामने जो हो उनको सम्मान रहता है हमेशा

थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा


कहां मन मिला है किसमें उपजी है नई आशा

लगन लौ कब जले संभव कैसे भला प्रत्याशा

कब किसके सामने लगे गौण होता न अंदेशा

थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा


हृदय भर उलीच दिया तरंगित वह शुभकामनाएं

नयन भर समेट लिया आलोकित सब कामनाएं

नव वर्ष उत्सव मना चैट द्वार पर भाव विशेषा

थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा।


धीरेन्द्र सिंह

10.01.2025

22.17



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