सत्य की अर्जियां तो दीजिए
कथ्य की मर्जियाँ भी लीजिए
प्रजातंत्र की है यह स्वतंत्रता
बरसते भाव रीतियों से भीगिए
आप विजेता नेता सा चल रहे
ठाठ में तो बाट को तो देखिए
कल तलक जयकारा लगानेवाला
किस कदर अनदेखा हुस्न हिए
दिल की संसद में है वाद-विवाद
शोर अनियंत्रित कुछ तो कीजिए
प्यार में पक्ष-प्रतिपक्ष द्वंद्व चरम
समर्पित है प्रणय पीठासीन लीजिए।
धीरेन्द्र सिंह
13.12.2024
19.30
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