बर्तन जितनी भूख हो गई
अदहन नहीं सुनाने को
भरसांय सा जग लगे
क्या-क्या चला भुनाने को
पेट अगन अब जग गगन
कौन आता समझाने को
जग दहन में कहां सहन
कितना कुछ है भरमाने को
चलिए हाँथ पकड़ लें अब तो
समरथ सारथ हो जाने को
पाया बहुत अधिक है लेकिन
बहुत अधिक है निभाने को।
धीरेन्द्र सिंह
31.10.2024
11.20
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