थक रही हृदय उमंगें, पसार दो
अंकुरित हैं भाव कई, संवार दो
यह समाज है बड़बोला, बड़दिखावा
यथार्थ संभव नहीं तो, करो दिखावा
प्रतिद्वंदियों का दे साथ, पछाड़ दो
अंकुरित हैं भाव कई, संवार दो
ज्ञान की छोड़ो, बस दबंगता रहे
साथ हो न कोई, समर्थन बहे
मुखौटा तुम अपना, उधार दो
अंकुरित हैं भाव कई, संवार दो
सत्य बीच, उन्मादित असत्य भीड़
असत्य की हुंकार, सत्य जलता नीड़
भीड़ उन्मादन, मंत्र वह खूंखार दो
अंकुरित हैं भाव कई, संवार दो।
धीरेन्द्र सिंह
08.08.2024
14.38
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