शुक्रवार, 28 मार्च 2025

भक्ति

 यही मेरी पूजा और धूप अगरबत्ती

आत्मा को छूँ सकूं निर्मित हो हस्ती

तुम में ही है देवत्व शून्य बोल रहा है

इंसान ही भगवान है सच ना मस्ती


हाड़-मांस ही नहीं प्राणी में झंकार है

जिंदगी गहन अनुभूति प्राणी में रचती

नयन, स्पर्श, भाव में ही जीव निभाव

कुछ इसी झुकाव में पूजा वेदी सजती


अब तक कभी न मांगा मंदिर से कुछ

मंदिर में जीव दीप्ति क्या न रचती

मूर्ति ऊर्जा को कर प्रणाम, जीव देखता

बंद नयन जुड़े हाँथ, भावना की शक्ति


ईश्वर मुझे मिलते मिल जाती देवियां

मेरी अर्चना है भौतिक आधार ना विरक्ति

जब भी खिला निमित्त रहा है कोई प्राणी

प्राणी में ईश्वर इसलिए प्राणी में अनुरक्ति।


धीरेन्द्र सिंह

29.03.2025

04.45

बुधवार, 26 मार्च 2025

लूट लिए

 कभी आंगन में बिछाकर सपने

मुझको लूट लिए मेरे ही अपने


बहुत चाह सी थी उनपर निर्भर

मेरे साथ हैं तो स्वर्णिम है घर

बड़े विश्वास से टूट गया अंगने

मुझको लूट लिए मेरे ही सपने


उमंग, तरंग, विहंग सी भावनाएं

आदर्श, सिद्धांत, समाज कामनाएं

चक्रव्यूह रच ढहा दिया भय ने

मुझको लूट लिए मेरे ही अपने


कहां थी कल्पनाएं कहां अब बताएं

किसी से क्या बोलें, क्षद्म हैं सजाए

व्यक्ति सत्य या भ्रम, यही है सबमें

मुझको लूट लिए मेरे ही अपने।


धीरेन्द्र सिंह

27.03.2025

09.01

सीखचों

 सीखचों से मैं घिरा आप क्या आजाद हैं

खींच तो हैं सब रहें पर मुआ जज्बात है


पल्लवन की आस में झूमती हैं डालियां

कलियां रहीं टूट अर्चना की तो बात है


व्यक्ति पंख फड़फड़ाता पिंजरे के भीतर

कौन कहता हर संग नभ का नात है


मनचाहा सींखचे कुछ दिन लुभाती रहें

बंधनों के दर्द में जपनाम ही नाथ है


जो बचता सींखचों से दीवाना कहलाता

जिंदगी की क्या कहें बंदगी हालात हैं।


धीरेन्द्र सिंह

27.03.2025

08.26

मंगलवार, 25 मार्च 2025

प्रसिद्धि

 यह प्रदर्शन, इस रुतबा का औचित्य क्या

प्रसिद्धि का लंबा है कहीं व्यक्तित्व क्या


कुछ तो इतिहास में जाते हैं खूब पढ़ाए

सत्य क्या है यह प्रायः समझ ना आए

एक वर्ग में लिए दर्प उंसमें निजत्व क्या

प्रसिद्धि का लंबा है कहीं व्यक्तित्व क्या


वसुधैव कुटुम्बकम में भी हैं अनेक कुनबे

शालीनता उनमें नहीं एक-दूजे को सुन बे

संबोधन, संपर्क में है बो दिया विष क्या

प्रसिद्धि का लंबा है कहीं व्यक्तित्व क्या


एक बुलबुले से उफन रहे हैं ख्याति प्रेमी

अल्पसमय में सपन हो रहे हैं चर्चित नेमी

जीवन सहज सुगंधित खोए सामीप्य क्या

प्रसिद्धि का लंबा है कहीं व्यक्तित्व क्या।


धीरेन्द्र सिंह

26.03.2025

08.07



प्रेमिकाएं

 कौंध जाती हैं हृदय की लतिकायें

कौन जाने क्या झेली हैं प्रेमिकाएं


भावनाओं का तूफान लिए चलती हैं

आंधियों में भी मासूम सी ढलती हैं

हृदय पर हैं उनकी अमिट कृतिकाएं

कौन जाने क्या झेली हैं प्रेमिकाएं


जब भी मिली अनायास अकस्मात

जैसी हों सावन की पहली बरसात

प्रणय की दिखा गईं कई शिखाएं

कौन जाने क्या झेली हैं प्रेमिकाएं


सब अकस्मात हुआ बात-बेबात सा

कब साक्षात हुआ एक पहल पा

लिखने लगा जीवन प्रेम की ऋचाएं

कौन जाने क्या झेली हैं प्रेमिकाएं


यह जग की बात नही अपनी बात

क्षद्म, धोखा कहीं ऐसे नहीं हालात

अनपेक्षित सामनाओं की वीरांगनाएं

कौन जाने क्या झेली हैं प्रेमिकाएं।


धीरेन्द्र सिंह

24.03.2025

21.19



सोमवार, 24 मार्च 2025

शब्द

 भावनाएं उन्नीस बीस अभिव्यक्ति साँच

शब्द चयन ही कौशल मन लेता बांच


शब्द के निर्धारित अर्थ शब्द न व्यर्थ

समर्थ वही लेखन कहन में ना तर्क

रचना सुंदर वही जिसके गुण हों कांच

शब्द चयन ही कौशल मन लेता बांच


भावनाओं का खिलाड़ी जो शब्द मदाड़ी

संदेश स्पष्ट सरल ना लगे वह टेढ़ी आड़ी

वाद्य की तरह शब्द रियाज कर माँज

शब्द चयन ही कौशल मन लेता बांच


भावनाएं हों प्रबल ढूंढें तब उचित शब्द

चयनित शब्द रचना करे सुखद स्तब्ध

शब्द के सामर्थ्य में भावनाओं की आंच

शब्द चयन ही कौशल मन लेता बांच।


धीरेन्द्र सिंह

25.03.2025

10.46



अदा

 अदा है या गुस्सा नहीं बोलोगी

लब पर है शबनम नहीं खोलोगी


चंचल हृदय की चंचल हैं बातें

अचल क्यों रहें तरंगे ही बाटें

यूं खामोशियों में सबब तौलोगी

लब पर है शबनम नहीं खोलोगी


संदेशों पर संदेशे हृदय ने भेजकर

कामनाओं को लपेटा है सहेजकर

दिन बीत गया सोचते अब छुलोगी

लब पर है शबनम नहीं खोलोगी


यह शबनम तो नहीं है नियंत्रण

ताकीद मृदुल क्या नहीं आमंत्रण

उलझन में कब तक यूं तलोगी

लब पर है शबनम नहीं खोलोगी।


धीरेन्द्र सिंह

23.03.2025

19.10