सोमवार, 22 अप्रैल 2024

बहकते नहीं हैं

 दिल, दाग, दरिया दुबकते नहीं हैं

हृदय, हाय, हालत बहकते नहीं हैं


प्रयासों से हरदम प्रगति नहीं होती

पहर दो पहर में उन्नति कहीं होती

ना जाने कब होता समझते नहीं हैं

हृदय, हाय, हालत बहकते नहीं हैं


ना जाने कब कैसे उभरती मोहब्बत

दिल से दिल की अनजानी रहमत

अगर लाख चाहें यूं मिलते नहीं हैं

हृदय, हाय, हालत बहकते नहीं हैं


अर्चना से अर्जित है यही क्या सृजित

हृदय कामनाओं में बसा कौन तृषित

समझने की चेष्टा, समझते कहीं हैं

हृदय, हाय, हालत बहकते नहीं हैं


गरीबी, विवशता, लाचारी सब हैं शोषण

प्रणय में भी मिलता कहां सबको पोषण

हमें मत संभालो, हम लुढ़कते नहीं हैं

हृदय, हाय, हालत बहकते नहीं हैं।


धीरेन्द्र सिंह


22.04.2024

10.45

रविवार, 21 अप्रैल 2024

गुईंया

 कहां तक चलेगा संग यह किनारा

कहां तक लहरों की हलचल रहेगी

तुम्ही कह दो बहती हवाओं से भी

कब तक छूती नमी यह रहेगी


कहो बांध पाओगी बहती यह धारा

तरंगों पर कब तक उमंगें बहेगी

मत कहना कि वर्तमान ही सबकुछ

फिर वादों की तुम्हारी तरंगे हंसेगी


डरता है प्यार सुन अपरिचित पुकार

एक अनहोनी की शायद टोली मिलेगी

कहां कौन प्यार खिल रहा बारहमासी

मोहब्बत भी रचि कोई होली खिलेगी


अधर, दृग, कपोल रहे हैं कुछ बोल

एक मुग्धित अवस्था आजीवन चलेगी

कहीं ब्लॉक कर निकस जाएं गुईंया

मुड़ी जिंदगी तब निभावन करेगी।


धीरेन्द्र सिंह


21.01.2024

11.56

शनिवार, 20 अप्रैल 2024

मचान

जैविक देह दलान है

मनवा का ढलान है

सरपट भागे आड़ाटेढ़ा

दूर लगे मचान है

 

करधन टूटी बर्तन टूटा

कौन मगन कौन रूठा

लगता भेड़ियाधसान है

दूर लगे मचान है

 

अक्कड़-बक्कड़ मुम्बई बो

छोड़ बनारस गए खो

भाषा वही बदला परिधान है

दूर लगे मचान है

 

जैविक जीव की लाचारी

मनवा गांव की बारी-बारी

धड़ ऊपर कमरधसान है


दूर लगे मचान है।

 

धीरेन्द्र सिंह

19.04.2024

17.35

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024

नरम हो गए

 पचीसों भरम के करम हो गए

याद आए तो हम नरम हो गए


मन की आवारगी की कई कुर्सियां

अनगढ़ भावों की बेलगाम मर्जियाँ 

ना जाने किसके वो धरम हो गए

याद आए तो हम नरम हो गए


एक नए में नएपन की अकुलाहट

भव्यता चाह की हरदम फुसफुसाहट

न जाने कब हृदयभाव, बरम हो गए

याद आए तो हम नरम हो गए


सब जगह से किए ब्लॉक, वह तपाक

भोलापन न जाने, ब्लॉक टूटता धमाक

दूजी आईडी से मार्ग बेधरम हो गए

याद आए तो हम नरम हो गए


ऑनलाइन में होती कहां लुकी-छिपी

मूंदकर आंखें खरगोश सी पाएं खुशी

उनके किस्से भी आखिर सहन हो गए

याद आए तो हम नरम हो गए।



धीरेन्द्र सिंह

19.04.2024

16.21

बुधवार, 17 अप्रैल 2024

छू लें हौले से

 आइए बैठकर चुनें रुई की सफेदी

धवलता अब मिलती कहां है

तमस में बत्तियों की टिमटिमाहट

सरलता रब सी मिलती कहां है


अपने घाव पर लें रख रुई फाहा

टीस औरों में दिखती कहां है

खुशियों के गलीचे के भाग्यवान

धूप इनको भी लगती कहां है


आप भी तो रुई सी हैं कोमल

घाव लगना नई बात कहां है

सब कोमलता के ही हैं पुजारी

पूछना अप्रासंगिक कोई घाव नया है


छू लें हौले से मेरे घाव हैं लालायित

मुझ सा बेफिक्र कहनेवाला कहां है

रुई की धवलता ले बोलूं, है स्वीकार्य

आपकी कोमलता सा नज़राना कहां है।


धीरेन्द्र सिंह


17.04.2024

09.08

सोमवार, 15 अप्रैल 2024

शरीर

 हिंदी साहित्य में रूप का बहु कथ्य है

शरीर एक तत्व है क्या यही तथ्य है


जब हृदय चीत्कारता, क्या वह बदन है

तथ्य आज है कि, जीव संवेदना गबन


है

क्या प्रणय भौतिकता का निजत्व है

शरीर एक तत्व है क्या यही सत्य है


अन्तरचेतना में, वलय की हैं बल्लियां

बाह्यचेतना में, लययुक्त स्वर तिल्लियां

चेतना चपल हो, क्या यही पथ्य है

शरीर एक तत्व है क्या यही सत्य है


प्रणय का है रूप या रूप का है प्रणय

आसक्तियां चुम्बकीय या समर्पित विनय

व्यक्ति उलझा भंवर में क्या यह त्यज्य है

शरीर एक तत्व है क्या यही सत्य है।


धीरेन्द्र सिंह

15.04.2024

18.17

रविवार, 14 अप्रैल 2024

ऋचा

 

अभिव्यक्तियां करे संगत कामना

शब्द संयोजन है जिसकी साधना

 

जब पढ़ें शब्द लगे जैसे स्केटिंग

शब्द दिल खींचे सम्मोहन मानिंद

शब्दों की थिरकन पर लय बांधना


शब्द संयोजन है जिसकी साधना

 

शब्द हैं सुघड़ तो भाव भी सुघड़

शब्द सौंदर्य पर जाता दिल नड़

रूप सौंदर्य से शब्द सौंदर्य मापना

शब्द संयोजन है जिसकी साधना

 

अनेक ऋचा पर अनोखी है एक ऋचा

तादात्म्य शब्द का जहां हो न खिंचा

शब्दों के सरगम में शब्दों का नाचना

शब्द संयोजन है जिसकी साधना।

 

धीरेन्द्र सिंह

14.04.2024

14.32