गुरुवार, 20 नवंबर 2025

दिल

 क्या संभव है दिल एक से जुड़ा रहे

जोंक सा चिपक जाए नहीं उड़ा रहे

इस असंभव को सभी प्रेमी स्वीकारते

हृदय जैसे नग है अंगूठी में जड़ा रहे


चित्त चंचल प्रवृत्ति है आकर्षण स्वभाव

कौन है जो रात्रिभर चाँद संग खड़ा रहे

प्यार भी तो एक सावनी फुहार सा है

पुलकन, सिहरन लिए बारिशों में पड़ा रहे


विवाह एक धर्म है कर्म सामाजिक निभाना

परिवार की संरचना में जीवन मूल्य मढ़ा करे

दायित्व परिणय है आजीवन निभाने के लिए

हृदय को कौन बांध पाया यह फड़फड़ा तरे।


धीरेन्द्र सिंह

21.11.2025

05.23



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