क्या संभव है दिल एक से जुड़ा रहे
जोंक सा चिपक जाए नहीं उड़ा रहे
इस असंभव को सभी प्रेमी स्वीकारते
हृदय जैसे नग है अंगूठी में जड़ा रहे
चित्त चंचल प्रवृत्ति है आकर्षण स्वभाव
कौन है जो रात्रिभर चाँद संग खड़ा रहे
प्यार भी तो एक सावनी फुहार सा है
पुलकन, सिहरन लिए बारिशों में पड़ा रहे
विवाह एक धर्म है कर्म सामाजिक निभाना
परिवार की संरचना में जीवन मूल्य मढ़ा करे
दायित्व परिणय है आजीवन निभाने के लिए
हृदय को कौन बांध पाया यह फड़फड़ा तरे।
धीरेन्द्र सिंह
21.11.2025
05.23

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