मैं कभी नहीं लिखता
कविता
नहीं है संभव किसी के लिए
लिख पाना कविता,
स्वयं कविता चुनती है
रचनाकार और ढल जाती है
रचनाकार के शब्दों में
बनकर कविता,
जीवन के विभिन्न भाव
छूते हैं मन को
और मस्तिष्क लगता है सोचने
वह भाव,
मन की तरंगें उठती हैं
लहराती हैं
और देती हैं मथ
मनोभावों को
और जग उठती है कविता,
रचनाकार उस भाव तंद्रा में
पिरो देता है
उन भावनाओं को
अपने शब्दों में,
संवर जाती है कविता,
रचनाकार नहीं लिखता
अपने आप को
निर्मित कर किसी भाव को,
ऐसे नहीं लिखी जाती
कविता,
भाव के भंवर जब
बन जाते हैं लहर
शब्दों में लिपट
जाती है कविता संवर।
धीरेन्द्र सिंह
08.11.2025
20.04
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