हृदय का हृदय से हो आराधना
पूर्ण हो प्रणय की प्रत्येक कामना
आप निजत्व के महत्व के अनुरागी
मैं प्रणय पुष्प का करना चाहूं सामना
तत्व में तथ्य का यदि हो जाये घनत्व
महत्व एक-दूजे का हो क्यों धावना
सामीप्य की अधीरता प्रतिपल उगे
समर्पण की गुह्यता को क्यों साधना
छल, कपट, क्षद्म का सर्वत्र बोलबाला
पहल भी कैसे हो वैतरणी है लांघना
कल्पना की डोर पर नर्तक चाहत मोर
प्रणय का प्रभुत्व ही सर्वश्रेष्ठ जागना
कहां गहन डूब गए रचना पढ़ते-पढ़ते
मढ़ते नहीं तस्वीर यूँ यह है भाव छापना
अभिव्यक्तियाँ सिसक जब मांगे सम्प्रेषण
निहित अर्थ स्वभाव चुहल कर भागना।
धीरेन्द्र सिंह
15.11.2025
23.15
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