शनिवार, 15 नवंबर 2025

आराधना

 हृदय का हृदय से हो आराधना

पूर्ण हो प्रणय की प्रत्येक कामना

आप निजत्व के महत्व के अनुरागी

मैं प्रणय पुष्प का करना चाहूं सामना


तत्व में तथ्य का यदि हो जाये घनत्व

महत्व एक-दूजे का हो क्यों धावना

सामीप्य की अधीरता प्रतिपल उगे

समर्पण की गुह्यता को क्यों साधना


छल, कपट, क्षद्म का सर्वत्र बोलबाला

पहल भी कैसे हो वैतरणी है लांघना

कल्पना की डोर पर नर्तक चाहत मोर

प्रणय का प्रभुत्व ही सर्वश्रेष्ठ जागना


कहां गहन डूब गए रचना पढ़ते-पढ़ते

मढ़ते नहीं तस्वीर यूँ यह है भाव छापना

अभिव्यक्तियाँ सिसक जब मांगे सम्प्रेषण

निहित अर्थ स्वभाव चुहल कर भागना।


धीरेन्द्र सिंह

15.11.2025

23.15

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