शुक्रवार, 14 नवंबर 2025

मस्त

तन मय होकर हो जाते हैं तन्मय

मन मई होकर सज जाते हैं उन्मत्त

यही जिंदगी की चाहत है अनबुझी

इसको पाकर तनमन हो जाते हैं मस्त


तन की सेवा तन की रखवाली प्रथम

मन क्रम, सोच से हो जाता है बृहत्त

इन दोनों से ही हर संवाद है संभव

बिन प्रयास क्या हो जाता है प्रदत्त


चेहरे की आभा में सम्मोहन आकर्षण

नयन गहन सागर मन मोहित आसक्त

प्यार की नैया के हैं खेवैया लोग जमीं के

जी लें खुलकर ना जाने कब हो जाए अस्त।


धीरेन्द्र सिंह

15.11.2025

07.48



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