चाहे तो जिंदगी समेट सब विषाद लें
चाहें तो बंदगी आखेट से प्रसाद लें
दर्द, दुख, पीड़ा की चर्चा समाज करे
चाहे तो हदबन्दगी में तुमसे उल्लास लें
व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी, पुरानी बात
प्रौद्योगिकी प्रमाणित जरूरी नहीं साथ लें
प्यार मनकों सा टूट रहा बिखर रहा बिफर
तृष्णा अपनी समझ परे फिर क्यों प्यास लें
चार लोग मिल गए उभर पड़ी वहां चतुराई
रंगराई की अंगड़ाई में तनहाई आजाद लें
तुरपाई की रीति निभाई बौद्धिक लुढ़कन
भौतिक ही यथार्थ का हितार्थ आस्वाद लें
कौन जिए उन्मुक्त घुटन की अनुभूतियाँ
एक तुम जिससे मनीषियों का नाद लें
सहज, शांत, सुरभित मिलने पर तुमसे
और कहीं भटकें तो परिस्थितियां विवाद दें।
धीरेन्द्र सिंह
28.10.2025
22.15
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