शनिवार, 25 अक्टूबर 2025

पीयूष पांडेय

 शब्दों की थिरकन पर सजा भावना की आंच

पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच


भारतीय विज्ञापन का यह गुनगुनाता व्यक्तित्व

सरल शब्दों में प्रचलित कर दिए कई कृतित्व

हिंदी को संवारे विज्ञापन की दुनिया में खांच

पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच


हिंदी न उभरती न होती आज ऐसी ही महकती

विज्ञापन की हो कैसी भाषा हिंदी न समझती

जो लिख दिए जो रच दिए अमूल्य सब उवाच

पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच


दशकों से हिंदी जगत में पीयूष की निरंतर चर्चा

इतने कम शब्दों में सरल हिंदी का लोकप्रिय चर्खा

आदर, सम्मान, प्रतिष्ठा से हिंदी विज्ञापन दिए साज

पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच।


धीरेन्द्र सिंह

26.10.2025

05.41


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