शब्दों की थिरकन पर सजा भावना की आंच
पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच
भारतीय विज्ञापन का यह गुनगुनाता व्यक्तित्व
सरल शब्दों में प्रचलित कर दिए कई कृतित्व
हिंदी को संवारे विज्ञापन की दुनिया में खांच
पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच
हिंदी न उभरती न होती आज ऐसी ही महकती
विज्ञापन की हो कैसी भाषा हिंदी न समझती
जो लिख दिए जो रच दिए अमूल्य सब उवाच
पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच
दशकों से हिंदी जगत में पीयूष की निरंतर चर्चा
इतने कम शब्दों में सरल हिंदी का लोकप्रिय चर्खा
आदर, सम्मान, प्रतिष्ठा से हिंदी विज्ञापन दिए साज
पीयूष पांडेय लिखते जग मुस्कराते रहता बांच।
धीरेन्द्र सिंह
26.10.2025
05.41
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