गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

प्रेम और प्यार

  ईश्वर की कामना की जितनी अभिलाषा
 मानवीय प्यार की उतनी ही प्रबल आशा  

मंदिरों के विग्रह भक्ति, आस्था, समर्पण                                       जीव वहां जाता श्रद्धा देती स्नेहिल दर्पण
देवी-देवता से प्यार नहीं प्रेम सबल नाता
मानवीय प्यार की उतनी ही प्रबल आशा

प्रेम अति व्यापक अलौकिक अनुभूति है
प्यार अति सूक्ष्म लौकिक जन रीति है
आत्मसंवेदनाओं का है जो चपल ज्ञाता
मानवीय प्यार की उतनी ही प्रबल आशा

प्यार करते-करते प्रेम भी दीप्त हो जाता
प्रेम करते-करते लीन होना ही हो पाता
मानव से करो प्यार वही है सफल खासा
मानवीय प्यार की उतनी ही प्रबल आशा।

धीरेन्द्र सिंह
23.10.2025
18.56

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