उदित होता अस्तित्व
होता हरदम सिंदूरी
उदित गोद में हो
या हो समय की दूरी
प्रसन्नता हो अपरम्पार
द्वार किरण मनधूरि
एक उल्लास मिले खास
एक तलाश हो पूरी
दीये की लौ नर्तन
बर्तन बजते बन मयूरी
दिवस प्रारम्भ ले आशाएं
परिवेश सजा है सिंदूरी
उदित हो जाना जीवन
सज्जित समुचित लोरी
प्यार कहीं आराधना भी
कामना होती तब पूरी।
धीरेन्द्र सिंह
19.10.2025
14.35
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