शनिवार, 13 जुलाई 2024

उपवन

 विचारों के उपवन में मिलती हैं आप जब

सितारों सी अभिव्यक्तियां टिमटिमाती हैं

भावनाएं परखती हैं भावनाओं के नृत्य

जाने-अनजाने नई कविता रच जाती है


यूं ही अनायास उठे आपका वही सुवास

सर्जना सुगंध पा मचल कुलमुलाती है

आपके नयन के पलक छुपे भाव खिले

शब्द बारात लिए भावना आतिशबाजी है


कहन जतन श्रृंगार आपका ही उपहार

सौंदर्य भाव पट खोल खूब इतराती है

सच कहूँ आप ही निज रचना प्रताप

सर्जना आपके प्रणय की एक बाती हैं।


धीरेन्द्र सिंह

13.07.2024

13.36

दृग पनघट

 पनघट दृग अंजन अनुरागी

सहमत दृढ़ पलक अतिभागी

नीर प्रवाह झलक प्रथम हो

सुख-दुख का भी प्रतिभागी


नयन भाव अति सत्य प्रवक्ता

पनघट जुड़ाव रचि नित्यभागी

धवल-श्याम नित भाव प्रतिपल

निज व्यक्तित्व अटूट संभागी


मनफुहार दृग झंकार झुमाए

पनघट भाव प्रबल विज्ञानी

नयनों में झांकें बन चातक

पनघट स्वाति नक्षत्र का पानी।


धीरेन्द्र सिंह

13.07.2024

13.00



गुरुवार, 11 जुलाई 2024

बारिश का मौसम

 कहीं कुछ है भींगा जतन कीजिए

है बारिश का मौसम यतन कीजिए

 

आज बादल है बरसा तो उभरी बूंदे

घटा घनघोर तरसी उठी हैं उम्मीदें

भींगना है या छुपना मनन कीजिए

है बारिश का मौसम यतन कीजिए

 

मेघ गर्जन बूंद नर्तन निखरती विधाएं

सज उठी प्रकृति खिल बिहँसती जगाए

सजाऊँ कहें तो ना दमन कीजिए

है बारिश का मौसम यतन कीजिए

 

यह शीतल पवन खिला मन उपवन

बूंदें जितनी प्रबल उतना मन दहन

आग में न जल जाऊं शमन कीजिए

है बारिश का मौसम यतन कीजिए।

 

धीरेन्द्र सिंह

12.07.2024

09.40



मंगलवार, 9 जुलाई 2024

सुन न

 तुम न, पुष्प में तीर का अदब रखती हो

सुन न, सुप्त के धीर सा गजब करती हो

 

आत्मसंवेदना एकाकार हो स्वीकार करने लगें

आत्मवंचना द्वैताकार को अभिसार करने लगे

धुन न, विलुप्त सी प्राचीर जद बिहँसती हो

सुन न, सुप्त के धीर से गजब करती हो

 

आप, तुम, तू आदि शब्द भाव प्रणय संयोजन

संबोधन है पुचकारता हो उत्सवी नव आयोजन

गुन न, गुणवत्ता में कितनी और निखरती हो

सुन न, सुप्त के धीर में गजब करती हो

 

तू शब्द प्यार में संबोधन गहन रचे मदभार

तू संबोधित ईश्वर असहनीय हो अत्याचार

बुन न, प्रीत चदरिया जिसमें रश्मि बिखरती हो

सुन न, सुप्त के धीर में गजब करती हो।

 

धीरेन्द्र सिंह

11.07.2024

06.30

गुरुवार, 4 जुलाई 2024

सांझ सूरज

 किसी के सांझ की पश्चिमी सूरज लालिमा

पलक आधार बन कर रहें मुग्धित तिरोहित

पवन कुछ शीतल झोंके से है रही ढकेल 

श्याम परिधान में आगमन श्यामल पुरोहित


ठगे से रह गए हतप्रभ देखकर क्षितिज 

हृदय भाव श्रृंगारित सांझ आभा आधारित

आखेटक ही लेते जीत विचरती वन उमंगे

नयन रहा समेट चुपचाप परिवेश प्रसारित


कहां कब कौन छोड़े साथ हो अकस्मात

चलन राह पर होती भावनाएं प्रताड़ित

दम्भ का खम्भ कहे हम ही हरदम हम 

सांझ सूरज कहे प्यार न होता निधारित।


धीरेन्द्र सिंह

05.07.2024

10.53




टी 20

 टी20 विश्वकप वर्ष 24 विजेता नाबाद

समर्पित प्रतिभा का विश्वव्यापी निनाद


एकल प्रदर्शन ले अपने कौशल का साथ

दीवानगी इतनी कि प्रभावित दर्शक हाँथ

कभी नाम खिलाड़ी तो भारत जिंदाबाद

समर्पित प्रतिभा का विश्वव्यापी निनाद


कौन था सजाया रहस्य क्रिकेट सुलझाया

प्रतिभाओं को माँज दिव्य ऊर्जा जगाया

बुद्ध की एकाग्रचित्तता राम सा युद्ध नाद

समर्पित प्रतिभा का विश्वव्यापी निनाद


मुंबई मरीन ड्राइव असंख्य जनबल सुहाई

नवांकुर क्रिकेट प्रतिभा बैट बॉल अमराई

अपार भीड़ फिर आए ऐसे इसके भी बाद

समर्पित प्रतिभा का विश्वव्यापी निनाद।


धीरेन्द्र सिंह

05.07.2024

09.37



बाधित

 केबल ही बंद कर दिए तरंगें बाधित

यह श्राप नया है प्रौदयोगिकी बाधित

 

कर दिए ब्लॉक मनोभाव की शुष्नुमाएं

नाड़ियां स्पंदित भाव सोच कहां जाएं

केबल लगे केंचुल सनक में सम्पादित

यह श्राप नया है प्रौद्योगिकी बाधित

 

बेतार का तार कई जीवन रहा संवार

आप केबल ठेपी परे, अबोला है तार

ताक-झांक चहुंओर निःशब्द मर्यादित

यह श्राप नया है प्रौद्योगिकी बाधित

 

हर पर्दे से सशक्त प्रौद्योगिकी का पर्दा

अश्व असंख्य मनोभाव के उडें ना गर्दा

अदृश्य अलौकिक बन मन में अबाधित

यह श्राप नया है प्रौद्योगिकी बाधित।

 

धीरेन्द्र सिंह

05.07.2024

07.22