गुरुवार, 16 जनवरी 2025

यार लिखूं

 उठे मन में भाव प्यार तो मैं प्यार लिखूं

शब्दों में ढालकर अपना मैं वही यार लिखूं


जलधार की तरह अब तो प्यार रह गया

सब कहते हैं स्थिर पर है प्यार बह गया

सत्य को छिपाकर क्यों सुखद श्रृंगार लिखूं

शब्दों में ढालकर अपना मैं वही यार


लिखूं


प्रवाह प्यार के एक अंग के हैं जो पक्षधर

कभी आंकी है चंचलता हिमखंड की जीभर

बहुत भीतर सिरा ऊपर भव्यता क्यों यार लिखूं

शब्दों में ढालकर अपना मैं वही यार लिखूं


मेरा यार मेरे हृदय की है बहुरंगी तरंगिनी

उसी धुन पर सजाता हूँ मेरी वही कामिनी

कथ्य लिखूं सत्य लिखूं या हृदय झंकार लिखूं

शब्दों में ढालकर अपना मैं वही यार लिखूं।


धीरेन्द्र सिंह

17.01.2025

08.19


घर

 हाथ असंख्य बर्तनों के काज हो गए

कहने लगे घर कितने सरताज हो गए


दीवारों को गढ़कर मनपसंद रूप सजाए

हर गूंज हो गर्वित खूब दीप धूप जलाए

बजती रही घंटियां द्वार अंदाज हो गए

कहने लगे घर कितने सरताज हो गए


रसोई हो पूर्व दक्षिण वास्तु की है सलाह

भोजन की ना कमी दीवारें रहीं है कराह

सब कुछ पाकर कैसे यह अनजान हो गए

कहने लगे घर कितने सरताज हो गए


घर में चार दीवारें वर्चस्वता की ना तकरार

घर के सदस्यों में हो अहं की नित हुंकार

पारिवारिक सर्जना के कई नव ताज हो गए

कहने लगे घर कितने सरताज हो गए।


धीरेन्द्र सिंह

16.01.2025

19.16



बुधवार, 15 जनवरी 2025

अष्तित्व

 जल में प्रवाहित ज्योति

होती है आस्था

और माटी का दीपक

एक आधार,


तट इसी प्रक्रिया से

हो उठता है

विशिष्ट, महत्वपूर्ण

और पूजनीय भी,


चेतना की लहरों पर

प्रज्ञा की लौ

और मानव तन,


सृष्टि है सुगम

सृष्टि है गहन।


धीरेन्द्र सिंह

15.01.2025

23.20



मंगलवार, 14 जनवरी 2025

पुश पोस्ट

 फेसबुक अब “पुश पोस्ट” का आसमान हो गया

समूह की पोस्ट पढ़ना कठिन अभियान हो गया


अनचाहे वीलॉग, पेज, विज्ञापन हैं धमक जाते

पढ़ना ही पड़ेगा कितना दौड़े कोई चाहे वह भागे

ब्लॉक करना इनको हर दिन का काम हो गया

समूह की पोस्ट पढ़ना कठिन अभियान हो गया


यह भी है उपाय समूह पृष्ठ को ही पढ़ा जाए

फेसबुक में हैं और सपने उसे कैसे गढ़ा जाए

शुल्क देकर इन सामग्रियों का गुणगान हो गया

समूह की पोस्ट पढ़ना कठिन अभियान हो गया


व्यापार अब साहित्य में अपनी बढ़त है बना रहा

शुल्क का साहित्य है पुरस्कार भी पढ़ा ना पढ़ा

कबीले से कुछ हिंदी समूह का चर्चित नाम हो गया

समूह की पोस्ट पढ़ना कठिन अभियान हो गया।


धीरेन्द्र सिंह

14.01.2025

11.08



रविवार, 12 जनवरी 2025

एक मर्म

 बहुत बोझ लगती हैं अब तो किताबें

नयन आपके भी तो कहते बहुत हैं

पन्ने पलटने से मिलते वही सब कुछ

जो आपकी नजरों से बिखरते बहुत हैं


जैसे रुपए से सब कुछ है मिलता नहीं

प्रस्तुतियां भी भरमाती पुस्तकें बहुत हैं

आप ही हैं भरोसा हमें परोसा किए जो 

आपकी भी दुनिया में हादसे बहुत हैं


छोड़िए किन पचड़ों में हम घिर गए

बैठिए आपके नयन में आसरे बहुत हैं

होंठ, जिह्वा, अदाएं हैं युग को सताए

एक मर्म मातृत्व का पुकारे बहुत है।


धीरेन्द्र सिंह

12.01.2025

13.58



शनिवार, 11 जनवरी 2025

तासीर

 मत आइएगा मैसेंजर पर मेरे

तासीर आपकी मुझको है घेरे


एक दौर मिला था बन आशीष

किस तौर बातें जाती थीं पसीज

यूं मैसेंजर देखूं सांझ और सवेरे

तासीर आपकी मुझको है घेरे


इंटरनेट पर भी खेत सरसों फूल

पुष्पवाटिका जिसमें चहचाहट मूल

हम थे चहचहाये लगा अपने टेरे

तासीर आपकी मुझको है घेरे


भावनाओं की डोली का नेट कहार

दुर्गम राह पर भी चले कदम मतवार

वो बातें वो लम्हे जैसे आम टिकोरे

तासीर आपकी मुझको है घेरे।


धीरेन्द्र सिंह

09.01.2025

07.13



शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

उलाहना

 वैश्विक हिंदी दिवस पर मिला उनका संदेसा

थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा


क्या करता, क्या कहता, उन्होंने ही था रोका

कुछ व्यस्तता की बातकर चैट बीच था टोका

सामने जो हो उनको सम्मान रहता है हमेशा

थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा


कहां मन मिला है किसमें उपजी है नई आशा

लगन लौ कब जले संभव कैसे भला प्रत्याशा

कब किसके सामने लगे गौण होता न अंदेशा

थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा


हृदय भर उलीच दिया तरंगित वह शुभकामनाएं

नयन भर समेट लिया आलोकित सब कामनाएं

नव वर्ष उत्सव मना चैट द्वार पर भाव विशेषा

थी कोमल शिकायत नव वर्ष संदेसा न भेजा।


धीरेन्द्र सिंह

10.01.2025

22.17