शनिवार, 22 जून 2024

उलीचता मन

 उलीचता मन तो सद्भाव, दुर्भाव है

इसी क्रम में जिंदगी का निभाव है

आप एक प्रश्न हैं असुलझी सी कहीं

सुलह हो जाए यह काल्पनिक दबाव है

 

कहां सहज है किसी मिलन का होना

जीव अनुभूतियों का अनगढ़ स्वभाव है

प्रत्यक्ष हो या कि हो ऑनलाइन वह

प्रत्येक संपर्क का विगत का प्रभाव है

 


मानवता क्रमशः खिसके जता मजबूरी

दूरी जहां वहां मिलता हृदय गांव है

जीवन है खेना या तिलतिलकर खोना

लोग क्या कहेंगे सोच दौड़ता पांव है।

 

धीरेन्द्र सिंह

22.06.2024

15.16

शुक्रवार, 21 जून 2024

प्यार भी विवशता

 बस यही खयाल है

काल्पनिक धमाल है

प्यार की रंगीनियाँ

मन के कई ताल हैं

 

खींच ले हृदय भाव

फिर अबीर गुलाल है

भावनाएं नदी उफनती

कहां क्या सवाल है

 

प्यार भी विवशता है

होता दो चार साल है

सब दिलों में झांकिए

अभिनय भरा गाल है।

 

धीरेन्द्र सिंह

22.06.2024

07.26




बुधवार, 19 जून 2024

छूकर दिल

 हल्के से छूकर दिल निकल गई

बहकती हवा थी या तेरी सदाएं

एक कंपन अभी भी तरंगित कहे

ओ प्रणय चल नयन हम लड़ाएं


महकती हैं सांसे दहकती भी हैं

चहकती भी हैं हम कैसे बताएं

हृदय तो झुका है प्रणय भार से

आए मौसम कि अधर कंपकंपाएँ


देह को त्यागकर राग बंजारा हो

चाह की रागिनी तृषित तमतमाए

रूह की आशिकी अगर हो गयी

साधु-संतों की टोली बन गुनगुनाएं।


धीरेन्द्र सिंह

20.06.2025

05.26




मंगलवार, 18 जून 2024

तुम

 होती है बारिश, बरसते हो तुम

कहीं तुम, सावनी घटा तो नहीं

आकाश में हैं, घुमड़ती बदलियां

कहीं तुम, पावनी छटा तो नहीं


बेहद करीबी का, एहसास भी है

तुम हो जरूरी, यह बंटा तो नहीं

उफनती नदी सा, हृदय बन गया

बह ही जाएं कहीं, धता तो नहीं


खयालों में रिमझिम मौसम बना

भींग जाना यह तो बदा ही नहीं

सावन आया घटा झूम बरसी भी

बूंद सबको छुए यह सदा तो नहीं।


धीरेन्द्र सिंह

19.06.2024

07.43



सोमवार, 17 जून 2024

मांजने को पद्य

 उसने कहा था पद्य से अच्छा लिखते गद्य

कविता से मैं उलझ पड़ा मांजने को पद्य


लगा बांधने उसको शब्दों की वेणी में

काव्य-काव्य ही रच रहा उसके श्रेणी में

तुकबंदी रहित वह रचती कविता सद्य

कविता से मैं उलझ पड़ा मांजने को पद्य 


मुझको खुद में गूंथ उसका है काव्य संकलन

ऐसा ना देखा प्रथम प्रकाशन का चलन

ऐसे जनमी बौद्धिक संतान हमारे मध्य

कविता से मैं उलझ पड़ा मांजने को पद्य


नर-नारी संपर्क से संभव होता निर्माण

संबंध नहीं था उससे पर थी वह त्राण

कवयित्री बनते ही हो गयी वह नेपथ्य

कविता से मैं उलझ पड़ा मांजने को पद्य।


धीरेन्द्र सिंह

18.06.2024

10.28

नारी

 मोहब्बत नहीं बस प्यार चाहिए

सोहबत नहीं आत्मदुलार चाहिए


शायरी की संस्कृति में है पर्देदारी

काव्य सर्जना में सर्वनेत्री है नारी

नारी का सर्वांगीण शक्तिधार चाहिए

सोहबत नहीं आत्मदुलार चाहिए


घूंघट उठाकर चेहरा देखना अपमान

शौर्य भक्ति पर नारी को है अभिमान

नारी संचालित मुखर स्वीकार्य चाहिए

सोहबत नहीं आत्मदुलार चाहिए


मूल भारतीय संस्कृति है नारी उन्मुख

एक भव्य नारी इतिहास है विश्व सम्मुख

ऑनलाइन आक्रमण भंजक वार चाहिए

सोहबत नहीं आत्मदुलार चाहिए।


धीरेन्द्र सिंह

18.06.2024

09.45


ब्लॉक

 प्यार की परिणीति होती है आध्यात्म

ब्लॉक हैं तो ना सोचिए प्यार समाप्त


तेवर, कलेवर, अहं, सुनी-सुनाई बात

लोग चाहें डुबोना करते हैं मीठे घात

सोच प्रभावित होती कुछ होते उत्पात

ब्लॉक हैं तो ना सोचिए प्यार समाप्त


पर्वत सी धीरता, गंभीरता बहुत जरूरी

प्यार में कभी होती नहीं जी हुजूरी

जिसने किया ब्लॉक होगी त्रुटि ज्ञात

ब्लॉक है तो ना सोचिए प्यार समाप्त


प्यार हो गया तो वह ना चुक पाता है

नए आकर्षण पर व्यक्ति झुक जाता है

फिर आकर्षण में ना मिठास ना बात

ब्लॉक है तो ना सोचिए प्यार समाप्त


समय लौटता इतिहास भी दोहराता है

प्यार खो गया सोच मन घबड़ाता है

पुनरावर्तन, प्रत्यावर्तन से सृष्टि नात

ब्लॉक हैं तो ना सोचिए प्यार समाप्त।


धीरेन्द्र सिंह

18.06.2024

04.49