शनिवार, 26 अगस्त 2023

स्त्री

 आप दिव्यता की एकमात्र कड़ी

जीव जिज्ञासा है स्त्रीत्व लड़ी


आरम्भ से जीत की रणदुदुम्भी

जीवन की है अभिनव जलकुंभी

इनका सानिध्य उपलब्धियां बड़ी

जीव जिज्ञासा है स्त्रीत्व लड़ी


आत्मा की ताज में वह बलवती

शैशव से वृद्धावस्था की सुमति

वह कौन जिसमें स्त्री न कड़ी

जीव जिज्ञासा है स्त्रीत्व लड़ी


मातृत्व का विशद गहन दुलार

प्रेयसी का सुगंधित मृदु अभिसार

जीवन यात्रा में पुष्प सी पड़ी

जीव जिज्ञासा है स्त्रीत्व लड़ी


ममता की समता सौम्य सुगंधित

मनवा की नम्रता कौन निबंधित

हृदय में यह दिव्यता है मढ़ी

जीव जिज्ञासा है स्त्रीत्व लड़ी।


धीरेन्द्र सिंह

26.08.2023

22.54

बुधवार, 23 अगस्त 2023

चंद्रयान 3

 चांद चर्चा में चांदनी है ठिठकी

चंद्रयान 3 पर निगाहें हैं अटकी


इसरो का कमाल भारत का धमाल

चांदनी खड़ी है हाँथ में ले वरमाला

प्रज्ञान उतरेगा ढूंढने जल मटकी

चंद्रयान 3 पर निगाहें हैं अटकी


विज्ञान का जहान या जहां विज्ञान

सुरक्षित उतरेगा यह तीसरा चंद्रयान

विक्रम का निर्धारित क्रम गुणवत्ता गठी

चंद्रयान 3 पर निगाहें हैं अटकी


स्थिर तन स्क्रीन पर चंचल हैं निगाहें

उत्साह, उमंग फड़कती रह-रह बाहें

सफलता की शुभकामनाएं हैं पगी

चंद्रयान 3 पर निगाहें हैं अटकी।


धीरेन्द्र सिंह

23.08.2023

16.07

मंगलवार, 22 अगस्त 2023

एक तुम हो

 

सुहाने होते मौसम में

भाव पुष्प खिल जाएं

युक्ति, चाह हो ऐसी

वाह! कहीं मिल जाएं

 

सदियों से यह कहते

प्रणय भाव झुक जाए

एक तुम हो ऐसे

कभी आए ? बिन बुलाए

 

तृष्णा क्यों रहे तृषित

नदियां बहती क्यों जाए

अंजुरी भर की बात

क्यों अधर बूंद तरसाए

 

इतना कहने का अधिकार

चुप भी ना रहा जाए

सहने को कई और

जीवन भी यही दर्शाए।

 

धीरेन्द्र सिंह

22.08.2023

12.41

रविवार, 20 अगस्त 2023

फोटो

 कविताओं को पढ़कर

दृष्टि पहुंचती है

अंतिम पंक्ति पर,

नीचे छपा रहता है

रचनाकार का फोटो,

पाठक मन ढूंढता है

काव्य भाव

प्रकाशित रचनाकार के

चेहरे पर,

पठित भावनाएं

बंजर नजर आती है,

जिज्ञासा छटपटाती है

और 

कविता मर जाती है।


धीरेन्द्र सिंह

20.08.2023

15.15

शनिवार, 12 अगस्त 2023

झूठे

प्यार कहां टूटता रिश्ते हैं टूटे
भूल गई झूठी बोलें हर झूठे

चाह के हर शब्द, लगें प्रारब्ध
कितनी हरकतें, कर रहीं स्तब्ध
भावनाएं वहीं, हां तुम हो छूटे
भूल गई झूठी बोलें हर झूठे

कौन नयन, दरस नव बसाए
मन हर्षाए पर लोगों से छुपाए
तौर-तरीके संग समय ले अनूठे
भूल गई झूठी बोले हर झूठे

प्रीत, प्रणय, प्यार होता कहां उन्मुख
दर्पण से बोलें छुप हो सम्मुख
क्रम किसको याद, कौन कब छूटे
भूल गई झूठी बोले हर झूठे।

धीरेन्द्र सिंह
12.08.2023
13.03

हो जाएंगे हताश

 देह के द्वार पर प्यार की तलाश

युग रहा असफल हो जाएंगे हताश


एक झंकार पकड़ती हैं अनुभूतियां

भाव फ़नकार में मिलें यह रश्मियां

मुक्त गगन है नहीं, यह बाहुपाश

युग रहा असफल हो जाएंगे हताश


जीत कैसी हार कैसी और दबदबा

संघर्ष की फुहार देता इसे बज़बजा

दबंगता से कब हुआ, कोमल विन्यास

युग रहा असफल हो जाएंगे हताश


यह मुंडेर वह मुंडेर क्यों री गौरैया

प्रकृति है या प्यास,क़ उजबक खेवैया

एक ही मुंडेर पर टिकती नहीं आस

युग रहा असफल हो जाएंगे हताश


ध्यान है, सम्मान है, अभिमान है प्यार

विविधता मन में है, क्यों विविध यार

द्रवित, दमित होगा यह भ्रमित उल्लास

युग रहा असफल हो जाएंगे हताश।


धीरेन्द्र सिंह

12.08.2023

07.06

बुधवार, 19 जुलाई 2023

विरह गीत

मुझसे मुझको कहने का अधिकार

छीन लिया कैसे वह, दब प्रतिकार

स्व की स्वरांजलि, नव भाव लिए

परकाया समझा था, कब स्वीकार


वातायन था मन, कलरव गुंजित

कुहुक बोल थे मिश्रित, रचि श्रृंगार

तोड़ दिए क्यों रहन सभी बन लाठी

परकाया समझा था, कब स्वीकार


रूप आकर्षण और नव देह मोह

ना बिछोह, दुःख ना, चीत्कार

चुपके से गहि मौन सिधारे

परकाया समझा था, कब स्वीकार


बदन दौड़ पर मन का ठौर यहीं

व्यक्तित्व गूंथ, अस्तित्व चौबार

बदले, जैसी हो बरसती बदरिया

परकाया समझा था, कब स्वीकार


सावन में डोले, झुलसी स्मृतियां 

बोले क्या मन, क्या अब दरकार

यह छल बोलूं क्यों, कि भूल गए

परकाया समझा था, कब स्वीकार।


धीरेन्द्र सिंह


19.07.2023

19.57