कभी खुलकर फूलों की झुरमुट लचक
कसक राह को है वही बातें सुनाएं
जैसे तुम्हारी याद में उठ जगे गीत
हृदय आतुर तुम्हारी ओर दौड़ जाए
कहां खो गए हैं निशान वह कदम
जो आए यहां झूम कर थे गुनगुनाए
फूलों के झुरमुट की बेताबियाँ को
राह के नवनिशान समझ भी न पाए
लचकते भी हैं महकते फूल झुरमुट
पर शोख वह कहानियां रच न पाएं
व्यवस्थित जीवन जैसे जीते रहें
एक भ्रम को सजाते घर को रचाएं।
धीरेन्द्र सिंह
26.06.2024
09.54
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें