सोमवार, 24 जून 2024

मन रे कुहूक

 अच्छा, कहिए बात कहीं से

सच्चा करिए साथ यहीं से

व्योम भ्रमण नहीं भाता है

नात गाछ हरबात जमीं से


मन उभरा, रही संयत प्रतिक्रिया

कहे अभिव्यक्ति कोई कमी है

शब्द बोलते, है बात अधूरी

सत्य बोलना कहां कमी है 


अलसाए भावों को, आजाती नींद

अधखिले वाक्य कहें जैसे गमी है

पुलकना चहकना जिंदगी का चखना

मन रे कुहूक, ऋतुएं थमी हैं।


धीरेन्द्र सिंह

25.06.2024

11.05

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