वह मुझसे गईं रूठ किसी बात पर
रह गई बातें अधूरी सी गांठ भर
दिल भी बोले पर पूरा ना बोल पाए
मन के आंगन रंग विविध ही दिखाए
अभिलाषाएं हों मुखरित दिखते चाँद भर
रह गई बातें अधूरी सी गांठ भर
वह नहीं तो क्या करें काव्य लिखें
उसकी बातों से लिपटकर बवाल लिखें
मन हर सुर में चीत्कारता है नाद भर
रह गई बातें अधूरी सी गांठ भर
सीखा देता है जीवन जीने का तरीका
जीता है कौन जीवन जीने के सरीखा
अभिनय हो जाती आदत अक्सर बाहं भर
रह गई बातें अधूरी सी गांठ भर।
धीरेन्द्र सिंह
09.04.2024
09.12
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