बुधवार, 23 अक्टूबर 2024

देह परे

 खोज में भी मौज है बहुत

संभावनाओं से हरा-भरा

प्यार वह ना कर सका

हादसों से जो भी है डरा


कामनाएं करें निरंतर याचनाएं

मन खिला-खिला रहा मुस्करा

भाव तरंगे मिले अनुकूल भी

बिन नहाए गंगा लगे मन तरा


अंकुश से भरे जो जीव हैं

अपने बंधनों से गिरे भरभरा

तृप्ति इनकी रुग्ण रहती सदा

और चाहें बढ़े समाज डरा-डरा


मुक्ति देती युक्ति जो करे प्रयुक्ति

देह दीप है जिसने लौ भरा

आत्मलीन हो पढ़ सका आत्मबोल

देह परे जिसने कुशल देह धरा।


धीरेन्द्र सिंह

24.10.2024

11.58


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