रविवार, 22 सितंबर 2024

बाजू

 उन महकते बाजुओं में आसुओं की नमी

बाजुओं को ना छुएं आंसुओं की हो कमी


बह गया उल्लास के चीत्कार में वह नयन

और मन उदास हो सूखता देखे है उपवन

खुरदुरी कभी लगे सूखी सी यह दिल जमीं

बाजुओं को ना छुएं आंसुओं की हो कमी


श्रम करे, श्रृंगार करे घर का नित उपचार करे

भ्रम कहीं ना कोई रहे बाजुओं से सुधार करे

मुस्कराता घर मिले जिसमें पुलकित हमीं

बाजुओं को ना छुएं आंसुओं में हो कमी


भोर होते चाँद निखरे तक हैं पुरजोशियाँ

रच दिया रख दिया घर लोग की मनमर्जियाँ

और समझें उन बिन कोई लगती ना कमी

बाजुओं को ना छुएं आंसुओं में हो कमी।


धीरेन्द्र सिंह

23,.09.2024

10.28

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें