उन महकते बाजुओं में आसुओं की नमी
बाजुओं को ना छुएं आंसुओं की हो कमी
बह गया उल्लास के चीत्कार में वह नयन
और मन उदास हो सूखता देखे है उपवन
खुरदुरी कभी लगे सूखी सी यह दिल जमीं
बाजुओं को ना छुएं आंसुओं की हो कमी
श्रम करे, श्रृंगार करे घर का नित उपचार करे
भ्रम कहीं ना कोई रहे बाजुओं से सुधार करे
मुस्कराता घर मिले जिसमें पुलकित हमीं
बाजुओं को ना छुएं आंसुओं में हो कमी
भोर होते चाँद निखरे तक हैं पुरजोशियाँ
रच दिया रख दिया घर लोग की मनमर्जियाँ
और समझें उन बिन कोई लगती ना कमी
बाजुओं को ना छुएं आंसुओं में हो कमी।
धीरेन्द्र सिंह
23,.09.2024
10.28
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