बुधवार, 26 जून 2024

भ्रम



 


कभी खुलकर फूलों की झुरमुट लचक
कसक राह को है वही बातें सुनाएं
जैसे तुम्हारी याद में उठ जगे गीत
हृदय आतुर तुम्हारी ओर दौड़ जाए
 
कहां खो गए हैं निशान वह कदम
जो आए यहां झूम कर थे गुनगुनाए
फूलों के झुरमुट की बेताबियाँ को
राह के नवनिशान समझ भी न पाए
 
लचकते भी हैं महकते फूल झुरमुट
पर शोख वह कहानियां रच न पाएं
व्यवस्थित जीवन जैसे जीते रहें
एक भ्रम को सजाते घर को रचाएं।
 
धीरेन्द्र सिंह
26.06.2024
09.54


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