शनिवार, 18 मई 2024

काव्य रचा शब्द

 

हर शब्द कहा शहद भरा छत्ता है

स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता है

 

शब्द के ऊपर रहें मोटी बतियां

शब्द भीतर भावपूरित नदियां

रचना भीतर पान चटक कत्था है

स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता है

 

कोई भी रचना न शब्द का पिरामिड

रचना लचीली न भाव रखे अडिग

रचनाकार अपनी धुन का सत्ता है

स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता है

 

भावनाओं के जमघट में शब्द साधना

कामनाओं के पनघट में वक़्त बांधना

लेखन योगभाव टहनी उगा पत्ता है


स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता है।

 

धीरेन्द्र सिंह

18.05.2024

21.00

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