शनिवार, 30 मार्च 2024

कह दीजिए

 क्यों प्रतीक, बिम्ब हों

क्यों हों नव अलंकार

यदि लहरें हैं तेज तो

कह दीजिए है प्यार


क्यों महीनों तक कश्मकश

क्यों सहें मानसिक चीत्कार


यदि प्रणय की प्रफुल्ल पींगे

कह दीजिए है प्यार


साहित्य सृजन है कल्पना

मनभाव का है झंकार

यदि यथार्थ जीना हो

कह दीजिए है प्यार


आदर्श, परंपरा और नैतिकता

प्रणय न जाने यह पतवार

यदि लहरों सा हौसला

कह दीजिए है प्यार।


धीरेन्द्र सिंह

शुक्रवार, 29 मार्च 2024

प्रक्रिया

 सकारात्मक प्रेरणा रचना की है प्रक्रिया

रच जाती कविता मिले आपकी प्रतिक्रिया


पुष्प पंखुड़ियों से शब्द में सुगंध भरूं

प्रस्तुति पूर्ण हो नित सोचूं क्या करूं

धन्यवाद मुस्कराता, विश्वास जनित हिया

रच जाती कविता मिले आपकीं प्रतिक्रिया


खींच ले जाती कविता देख सन्नाटा

और मिश्रीत भावनाओं का ज्वार-भाटा

शब्द निबंधित, बिम्बित भावना क्रिया

रच जाती कविता मिले आपकी प्रतिक्रिया


अंतर्मन हो पवन, आपकी ले चेतना

विश्व एक प्रतिबिंब, छवि को देखना

शब्द कहें आपके, आप स्पंदित जिया


रच जाती कविता मिले आपकी प्रतिक्रिया।


धीरेन्द्र सिंह

29.03.2024

20.46

गुरुवार, 28 मार्च 2024

पहल प्रथम

 होठों पर शब्द रहे भागते

अधर सीमाएं कैसे डांकते

हृदय पुलक रहा था कूद

भाव उलझे हुए थे कांपते


सामाजिक बंधनों की मौन चीख

नयन चंचल, पलक रहे ढाँपते

अपूर्ण होती रही रचनाएं सभी

साहित्य के पक्ष रहे जांचते


प्रणय की अभिव्यक्ति ही नहीं

व्यथाओं में भी, सत्य रहे नाचते

लिखते-लिखते लचक गए शब्द

बांचते-बांचते रह गए नापते


सम्प्रेषण अधूरा, कहते हैं पूरा

पोस्ट से हर दिन, रहे आंकते

सामनेवाला करे पहल प्रथम

भाव रहे लड़खड़ाते, नाचते।



धीरेन्द्र सिंह

28.03.2024

19.10

बुधवार, 27 मार्च 2024

मठाधीश


 तलहटी में तथ्य को टटोलना

सत्य के चुनाव की है प्रक्रिया

कर्म की प्रधानता कहां रही

चाटुकारिता बनी है शुक्रिया


है कोई प्रमाण कहे तलहटी

घोषणाएं ही विश्वस्त क्रिया

अनुकरण जयघोष का गुंजन

दोलायमान धूरी ही समप्रिया


चल पड़े पग असंख्य, लालसा

कथ्यसा ककहरा द्रुत त्रिया

रटंत के हैं महंत दिग दिगंत

अंतहीन कामनाओं का हिया


व्यक्ति आलोड़ित अचंभित चले

मठाधीश मन्तव्य लगे दिया

तथ्य भ्रमित शमित जले

शोर है पथ आलोकित किया।


धीरेन्द्र सिंह

27.03.2024

20.26

देह

 देह कहां अस्तित्ब है मनवा

आत्म प्रीति ही जग रीति

रूप की आराधाना है भ्रम

आत्मचेतना ही नव नीति


देह प्रदर्शन देता मोबाइल

दैहिक कामना ढलम ढलाई

रूप कहां की प्रेम रीति

आत्मचेतना ही नव निति


ना सोचो देह जशन है

बिना देह सजनी-सजन हैं

संवेदनाओं में गहन प्रतीति

आत्मचेतना ही नव प्रतीति


वर्षों तक हम रहे अबोले

भाव हृदय कहां बिन बोले

तत्व चेतना की ही स्थिति

आत्मचेतना ही नव प्रतीति।


धीरेन्द्र सिंह

27.03.2024

16.19

सोमवार, 25 मार्च 2024

मीते

 होली यह पढ़ हुई मालामाल

“मीते के गाल पर गुलाल”


"वाह! मन गयी अबकी होली"

प्रफुल्लित अंतर्चेतना तब बोली

भाव-भाव मिल रंग धमाल

“मीते के गाल पर गुलाल”


सोशल मीडिया पर की होली

रंग-ढंग सज होती है ठिठोली

गहन भाव शब्द हियताल

“मीते के गाल पर गुलाल”


गालों पर है गुलाल नृत्य

रंगोत्सव आता नहीं नित्य

प्रणय प्रेरणा कर गयी निहाल

“मीते के गाल पर गुलाल।“


धीरेन्द्र सिंह


25.03.2024

13.41

शनिवार, 23 मार्च 2024

ओ मनबसिया

 सब मनबतिया जग सारी रतिया, ओ मनबसिया

चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया


 अभिलाषाओं के आंगन में दृग हुलसित छाजन

हृदय उल्लसित तो करे कौन उसका वाचन

गहन तरंगों में ध्वनि भ्रमित भ्रमर नीदिया

चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया


सांखल खटकी द्वार की हिचकी पाहुन आए

ठग गई रात महक के कोरी खुद ही उफनाए

एक निपट सौ जुगत हार बैठीं सब नीतियां

चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया


मन के कितने रंग, उमंग अबीर और गुलाल 

पुलकित भाव रंग संग कपोल रचित भाल

ताल नई कुछ चाल नई अभिनव ठाढ़ी कृतियाँ

चांद पिघल तकिया संग झूमे, झिलमिल रतिया।


धीरेन्द्र सिंह


25.03.2024

08.12