रविवार, 23 जून 2024

ठुड्डी पर चेहरा

कहां से कहां ढूंढ लेती है आप

हथेली पर ठुड्डी चेहरे का आब

रचना मेरी पाती प्रशंसा आपकी

दूं यहां धन्यवाद आपको जनाब

 

यूं लिखती भी हैं प्यारी कविताएं

भावों में तिरोहित लगें प्रीत ऋचाएं

समझ भी कहां पाए जग आफताब

दूं यहां धन्यवाद आपको जनाब

 

आज लिख रहा हूँ केवल आपको

हूँ मैं वैसा नहीं भाव को ढाँप दो

एक तिनका हूँ लहरें हैं लाजवाब

दूं यहां धन्यवाद आपको जनाब।

 

धीरेन्द्र सिंह

23.06.2024

11.16



नौका बाती

 अपनी अठखेलियों का समंदर बनाइए

बिन पाल नौका का भ्रमण फिर कराइए

यह आपकी है कुशलता और विशिष्टता

किनारे खड़ा मन न और भरमाइए


लहरों की चांदनी सा होगा भाव नृत्य

एक-दूजे के होंगे पूरक निज कृत्य

जल कंपन की भावनाओं को समझाइए

किनारे खड़ा मन न और भरमाइए


अस्तित्व के विकास में है व्यक्तित्व गूंज

कामनाएं मेरी रहीं, आपका निजत्व पूज

एक अर्चना है नौका बाती तो सुलगाईए

किनारे खड़ा मन न और भरमाइए।


धीरेन्द्र सिंह

23.06.2024

16.05



अतिरंगी

 अतिरंगी अतिरागी मिली सजनिया

अनुरागी अतिभागी खिली अंगनिया


सूफी सोचें यह प्रभु का ही सम्मान है

प्रेमी सोचें प्रियतमा सुघड़ अभिमान है

जैसी रही भावना मन वैसा नचनिया

अनुरागी अतिभागी खिली अंगनिया


हर मन सोचे, परिवेश नोचे, बोले धोखे

हर तन डोले, रस्सी तोड़े, सुप्त अंगों के

उन्मुक्त गगन का गमन चाँद चंदनिया

अनुरागी अतिभागी खिली अंगनिया


सूफी हों या बैरागी या प्रकंड वीतरागी

सब चाहें उन्मुक्तता, कर सेवा बड़भागी

प्यार और पूजा, एक कलश धमनियां

अनुरागी अतिभागी खिली अंगनिया।


धीरेन्द्र सिंह

23.06.2024

15.41

सत्य की चुन्नटें

 सत्य की चुन्नटें असत्य खुले केश हैं

नारियां ऐसी भी जिनके कई भेष हैं

कौन जाने किस तरह खुली भावनाएं

धुंध सी उभर रहीं कामनाएं अशेष हैं


प्यार का शामियाना अदाओं के शस्त्र

घायल, मृतक कई उत्साह पर विशेष है

शामियाना वहीं लगे जहां नई संभावनाएं

पुराने को अचानक त्यजन जैसे मेष है


अब भी सबला है अपने ही कर्मों से

उन्मादित, दुस्साहसी लिए संदेश है

नाम, प्रसिद्धि, दबंगता आसीन हो

यह हिंसक, आक्रामक कमनीय शेष है।


धीरेन्द्र सिंह

23.06.2024

07.25

शनिवार, 22 जून 2024

उलीचता मन

 उलीचता मन तो सद्भाव, दुर्भाव है

इसी क्रम में जिंदगी का निभाव है

आप एक प्रश्न हैं असुलझी सी कहीं

सुलह हो जाए यह काल्पनिक दबाव है

 

कहां सहज है किसी मिलन का होना

जीव अनुभूतियों का अनगढ़ स्वभाव है

प्रत्यक्ष हो या कि हो ऑनलाइन वह

प्रत्येक संपर्क का विगत का प्रभाव है

 


मानवता क्रमशः खिसके जता मजबूरी

दूरी जहां वहां मिलता हृदय गांव है

जीवन है खेना या तिलतिलकर खोना

लोग क्या कहेंगे सोच दौड़ता पांव है।

 

धीरेन्द्र सिंह

22.06.2024

15.16

शुक्रवार, 21 जून 2024

प्यार भी विवशता

 बस यही खयाल है

काल्पनिक धमाल है

प्यार की रंगीनियाँ

मन के कई ताल हैं

 

खींच ले हृदय भाव

फिर अबीर गुलाल है

भावनाएं नदी उफनती

कहां क्या सवाल है

 

प्यार भी विवशता है

होता दो चार साल है

सब दिलों में झांकिए

अभिनय भरा गाल है।

 

धीरेन्द्र सिंह

22.06.2024

07.26




बुधवार, 19 जून 2024

छूकर दिल

 हल्के से छूकर दिल निकल गई

बहकती हवा थी या तेरी सदाएं

एक कंपन अभी भी तरंगित कहे

ओ प्रणय चल नयन हम लड़ाएं


महकती हैं सांसे दहकती भी हैं

चहकती भी हैं हम कैसे बताएं

हृदय तो झुका है प्रणय भार से

आए मौसम कि अधर कंपकंपाएँ


देह को त्यागकर राग बंजारा हो

चाह की रागिनी तृषित तमतमाए

रूह की आशिकी अगर हो गयी

साधु-संतों की टोली बन गुनगुनाएं।


धीरेन्द्र सिंह

20.06.2025

05.26