गुरुवार, 23 मई 2024

रिझाना है

 हर उम्र का एक दोस्ताना है

उम्र दर उम्र वही आशिकाना है

कुछ गंभीरता लिए समझदारी भी

जिंदगी को भी तो रिझाना है


तथ्य हैं, कथ्य हैं, सत्य-असत्य है 

लक्ष्य है, लाभ है, पथ्य-नेपथ्य है

दिनचर्या पाठ्यक्रम सा पढ़ जाना है

जिंदगी को भी तो रिझाना है


सहजता अक्सर होती है विवशता

कर्म फेंक रहे भाग्य है कम फंसता

जिजीविषा का बस एक तराना है

जिंदगी को भी तो रिझाना है


देखिए न उम्र का मूक सौंदर्य

कहिए न चाह से करे सहचर्य

मोहित, मुग्धित, मधुर गुनगुनाना है

जिंदगी को भी तो रिझाना है।


धीरेन्द्र सिंह

22.05.2024

21.22



मंगलवार, 21 मई 2024

दहक

 तुम्हें इस कदर हम देखा किए हैं

कि निगाहों को कोई भी जंचता नहीं

खूबी जो तुम में बुलाती हमें ही

तुम्हारे नयन प्यार हंसता नहीं


बहुत जानती हो तराना मोहबत के

एहसासों में यूं कोई बसता नहीं

हुनर प्रीत का बनाती हो मौलिक

किसी और में यह दिखता नहीं


एक चाह का उछाल संबोधन तुम

आप बोलूं तो प्यार झलकता नहीं

एक आदर और सम्मान समर्पित

बिन इसके प्यार खुल हंसता नही 


प्यार तो विनम्रता की उन्मादी हिलोर

बिना तट के प्यार बहकता नही 

लहरों की ऊर्जा हो स्पंदित तुम में

जब तक न बहको दहकता नहीं।


धीरेन्द्र सिंह

21.05.2024

22.30



पलकों की घूंघट

 

पलकों की घूंघट में छिपता है प्यार

प्यार में सिमटकर खिलता है संसार

 

एक हृदय धड़का हो आकर्षित तड़पा

एक खिंचाव अनजान विकसित कड़का

छन्न हुई अनुभूतियां लेकर वह खुमार

प्यार में सिमटकर खिलता है संसार

 

अनजाने प्राण में लगे समाहित प्राण

अपरिचित व्यक्तित्व चावल कहां मांड

दो हृदय एक लगें भीनी सी झंकार

प्यार में सिमटकर खिलता है संसार

 

मानवीय समाज की हैं विभिन्न रीतियाँ

प्यार जताने की नियंत्रित हैं नीतियां

प्यार तो उन्मुक्त नकारे विभक्ति द्वार

प्यार में सिमटकर खिलता है संसार

 

पूछिए दिलतार से भंजित प्यार वेदनाएं

कब छूटा कैसे टूटा भला कोई क्यों बताए

टीस, तड़प, नैतिकता खड़ग की टंकार

प्यार में सिमटकर खिलता है संसार।

 

धीरेन्द्र सिंह

21.05.2024

15.29



सोमवार, 20 मई 2024

साहित्य

 क्यों उठा लेते हैं विगत साहित्य

क्या है यह रचनाकार आतिथ्य

एक समय था पुस्तकें ही थीं

और था प्राध्यापक व्यक्तित्व


जो कहा साहित्य क्या सत्य वही

रचनाएं लिखी और कितनी बही

नाम लोकप्रिय क्या साहित्य सतीत्व

शेष रचनाकारों के गए कहां कृत्य


सोशल मीडिया में अनोखी अनुगूंज

हे विगत चितेरे, वर्तमान को बूझ

विगत से मोहित, भ्रमित साहित्य

वर्तमान में अनभिज्ञ, नव कृतित्व


पहले से पारदर्शी है, समय यह

सूचनाओं के, अंबार संग गह

आत्मशक्ति, विचारशक्ति भवितव्य

वसुधैव की सोच, छोड़ निजत्व।


धीरेन्द्र सिंह

20.05.2024

14.22



रविवार, 19 मई 2024

चिंतन

 

जो जितना पढ़ेगा

वह उतना भिड़ेगा

अंधकार दूर कर

ज्योति वह तिरेगा

 

पुस्तक मात्र नहीं

दृष्टि जो मढ़ेगा

पुस्तक से बेहतर

विचार वह नढ़ेगा

 

धार्मिक पुस्तकें विशिष्ट

चिंतन पढ़ फहरेगा

शेष जीवन दिखलाता

समझा वही बढ़ेगा

 

सीख नहीं क्षोभ

दर्द ऐसे कहरेगा

भाषा, चिंतन, अभिव्यक्ति

भविष्य को तरेगा।

 

धीरेन्द्र सिंह

19.05.2024

13.53



शनिवार, 18 मई 2024

काव्य रचा शब्द

 

हर शब्द कहा शहद भरा छत्ता है

स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता है

 

शब्द के ऊपर रहें मोटी बतियां

शब्द भीतर भावपूरित नदियां

रचना भीतर पान चटक कत्था है

स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता है

 

कोई भी रचना न शब्द का पिरामिड

रचना लचीली न भाव रखे अडिग

रचनाकार अपनी धुन का सत्ता है

स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता है

 

भावनाओं के जमघट में शब्द साधना

कामनाओं के पनघट में वक़्त बांधना

लेखन योगभाव टहनी उगा पत्ता है


स्वाद न मिले तो फर्क अलबत्ता है।

 

धीरेन्द्र सिंह

18.05.2024

21.00

शुक्रवार, 17 मई 2024

आप

 किसी सड़क पर रोज आप निकलती होंगी

किसी तरह ट्रैफिक लड़खड़ाती चलती होगी

आपको मालूम नहीं आपकी हर अदाएं

हवाएं छूकर हर शख्स दिल धड़कती होंगी


आप मासूम हैं आपको मालूम भी नहीं

नज़र एक बार देख कर मचलती होंगी

सौम्य, शालीन अब मिलते ही कहाँ हैं

आहें तड़पती आप पर ही ढलती होंगी


एक उम्र जीने का हुनर आपने बांटा

एक अदा महफिलों सी ठहरती होगी

हर नज़र यूं भी आप तक न पहुंचे

संवेदनाएं जीवित वही लहरती होंगी


सौंदर्य उम्र के खूंटे पर, बंधा कब है

जिंदगी प्यार में यूं ही उभरती होगी

आपसे प्यार हो चुका कब से, उम्दा

आपको मालूम भी नहीं, डरती होंगी।


धीरेन्द्र सिंह

17.05.2024

17.21