बुधवार, 3 अप्रैल 2024

फुलझड़ियाँ

 अधर स्पंदित अस्पष्ट

नयन तो हैं स्पष्ट

ताक में भावनाएं

कब लें झपट


जहां जीवंत समाज

दृष्टि छल कपट

चुहलबाजी में कहें

चाह तू टपक


इतने पर आपत्ति

व्यवहार न हो नटखट

ऐसे आदर्शवादी जो

गए कहीं भटक


अट्ठहास दिल खोल

अभिव्यक्ति लय मटक

जिंदगी की फुलझड़ियाँ

ऐसे ही चटख।



धीरेन्द्र सिंह

02.04.2024

21.32

मंगलवार, 2 अप्रैल 2024

देहरी

देहरी पहुंचा उनके, देने कदम आभार
समझ बैठी वह, आया मांगने है प्यार

ठहर गया वह कुछ भी ना बोला
नहीं सहज माहौल प्रज्ञा ने तौला
फिर बोली क्यों आए, खुले ना द्वार
समझ बैठी वह आया मांगने है प्यार

कैसे बोलें क्यों बोलें देहरी की वह बात
नीचे भागी-दौड़ी आयी थी ले जज्बात
उसी समन्वय का करना था श्रृंगार
समझ बैठी वह आया मांगने है प्यार

उसकी निश्चल मुद्रा देख, बोली भयभीत
जाते हैं या दरवाजे को, बंद करूँ भींच
वह मन ही मन बोला, देहरी तेरा उपकार
समझ बैठी वह आया मांगने है प्यार

क्या कभी याचना से प्राप्त हुआ है प्यार
क्या कभी प्यार भी रहा बिन तकरार
वह गया था देहरी को करने नमस्कार
समझ बैठी वह आया मांगने है प्यार।


धीरेन्द्र सिंह
02.04.2024
13.17

सोमवार, 1 अप्रैल 2024

गांव

 सूनी गलियां सूनी छांव

पिघल रहे हैं सारे गांव


युवक कहें है बेरोजगारी

श्रमिक नहीं, ताके कुदाली

शिक्षा नहीं, पसारे पांव

पिघल रहे हैं सारे गांव


खाली खड़े दुमंजिला मकान

इधर-उधर बिखरी दुकान

वृक्ष के हैं गहरे छांव

पिघल रहे हैं सारे गांव


भोर बस की ओर दौड़

शहर का नहीं है तोड़

शाम को चूल्हा देखे आंव

पिघल रहे हैं सारे गांव


वृद्ध कहें जीवन सिद्ध

कहां से पाएं दृष्टि गिद्ध

घर द्वार पर कांव-कांव

पिघल रहे हैं सारे गांव


भागे गांव शहर की ओर

दिनभर खाली चारों छोर


रात नशे का हो निभाव

पिघल रहे हैं सारे गांव।


धीरेन्द्र सिंह

01.04.2024

18.30

रविवार, 31 मार्च 2024

सूर्य खिसका

 सांझ पलकों में उतरी, सूर्य खिसका

आत्मभाव बोले कौन कहां किसका


चेतना की चांदनी में लिपटी भावनाएं

मुस्कराहटों में मछली गति कामनाएं

मेघ छटा है, बादल बरसा न बरसा

आत्मभाव बोले कौन कहां किसका


घाव हरे, निभाव ढंके, करे अगुवाई

दर्द उठे, बातें बहकी, छुपम छुपाई

जीवन एक दांव, चले रहे उसका

आत्मभाव बोले कौन कहां किसका


भ्रम के इस सत्य का सबको ज्ञान

घायल तलवार पर आकर्षक म्यान

युद्ध भी प्यार है, दाह है विश्व का

आत्मभाव बोले कौन कहां किसका।


धीरेन्द्र सिंह


31.03.2024

19.42

शनिवार, 30 मार्च 2024

कह दीजिए

 क्यों प्रतीक, बिम्ब हों

क्यों हों नव अलंकार

यदि लहरें हैं तेज तो

कह दीजिए है प्यार


क्यों महीनों तक कश्मकश

क्यों सहें मानसिक चीत्कार


यदि प्रणय की प्रफुल्ल पींगे

कह दीजिए है प्यार


साहित्य सृजन है कल्पना

मनभाव का है झंकार

यदि यथार्थ जीना हो

कह दीजिए है प्यार


आदर्श, परंपरा और नैतिकता

प्रणय न जाने यह पतवार

यदि लहरों सा हौसला

कह दीजिए है प्यार।


धीरेन्द्र सिंह

शुक्रवार, 29 मार्च 2024

प्रक्रिया

 सकारात्मक प्रेरणा रचना की है प्रक्रिया

रच जाती कविता मिले आपकी प्रतिक्रिया


पुष्प पंखुड़ियों से शब्द में सुगंध भरूं

प्रस्तुति पूर्ण हो नित सोचूं क्या करूं

धन्यवाद मुस्कराता, विश्वास जनित हिया

रच जाती कविता मिले आपकीं प्रतिक्रिया


खींच ले जाती कविता देख सन्नाटा

और मिश्रीत भावनाओं का ज्वार-भाटा

शब्द निबंधित, बिम्बित भावना क्रिया

रच जाती कविता मिले आपकी प्रतिक्रिया


अंतर्मन हो पवन, आपकी ले चेतना

विश्व एक प्रतिबिंब, छवि को देखना

शब्द कहें आपके, आप स्पंदित जिया


रच जाती कविता मिले आपकी प्रतिक्रिया।


धीरेन्द्र सिंह

29.03.2024

20.46

गुरुवार, 28 मार्च 2024

पहल प्रथम

 होठों पर शब्द रहे भागते

अधर सीमाएं कैसे डांकते

हृदय पुलक रहा था कूद

भाव उलझे हुए थे कांपते


सामाजिक बंधनों की मौन चीख

नयन चंचल, पलक रहे ढाँपते

अपूर्ण होती रही रचनाएं सभी

साहित्य के पक्ष रहे जांचते


प्रणय की अभिव्यक्ति ही नहीं

व्यथाओं में भी, सत्य रहे नाचते

लिखते-लिखते लचक गए शब्द

बांचते-बांचते रह गए नापते


सम्प्रेषण अधूरा, कहते हैं पूरा

पोस्ट से हर दिन, रहे आंकते

सामनेवाला करे पहल प्रथम

भाव रहे लड़खड़ाते, नाचते।



धीरेन्द्र सिंह

28.03.2024

19.10