अधर स्पंदित अस्पष्ट
नयन तो हैं स्पष्ट
ताक में भावनाएं
कब लें झपट
जहां जीवंत समाज
दृष्टि छल कपट
चुहलबाजी में कहें
चाह तू टपक
इतने पर आपत्ति
व्यवहार न हो नटखट
ऐसे आदर्शवादी जो
गए कहीं भटक
अट्ठहास दिल खोल
अभिव्यक्ति लय मटक
जिंदगी की फुलझड़ियाँ
ऐसे ही चटख।
धीरेन्द्र सिंह
02.04.2024
21.32
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