मंगलवार, 18 जनवरी 2022

दालान

 अहसान के दालान में

गौरैया का खोता है,

जेठ की धूप खिली

मन सावन का गोता है;


खपरैले छत छाई लतिकाएं

पदचिन्ह दालान भरमाएं

दृष्टि कहे बड़ा वह छोटा है

सूना पड़ा गौरैया खोता है;


फिर वही पाद त्राण अव्यवस्थित

कौन है व्यक्तित्व फिर उपस्थित

मन के हल से नांध तर्क जोता है

झूम रहा क्यों आज खोता है।

धीरेन्द्र सिंह

गुरुवार, 13 जनवरी 2022

मकर संक्रांति

 धर्म जब कर्म के करीब हो

जीवन की मिटे सब भ्रांति

ऑनलाइन उत्सव मनाएं यूं

मन से हो मन मकर सक्रांति


लोहड़ी भी संग लिए पोंगल

तीन अलग नाम लिए विश्रांति

फसलों से आसमान गूंज उठे

मन से हो मन मकर संक्रांति


शीत ढले ऊष्मा बढ़े ले उल्लास

ऐसी ही होती सब धार्मिक क्रांति

आपकी उमंग में उड़ती पतंग हो

मन से हो मन मकर संक्रांति।

धीरेन्द्र सिंह



सोमवार, 27 दिसंबर 2021

उसकी बात

 वह कहती है

 सब सच नहीं होता

 भ्रम है सोशल मीडिया, 

मैने कहा

 इस मीडिया ने तुम्हें दिया

 लगा लगने एक दूजे को

 एक है जिया, 

झल्लाकर वह बोली

 यदि सोशल मीडिया

 लगता है सत्य

 तो गौण कथ्य

 जी लीजिए

 वहीं शर्तिया

 मानव प्रकृति 

छुपाने की 

बरगलाने  की 

कुछ दीवानी की 

कुछ दीवाने  की .


धीरेन्द्र  सिंह

गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

भाव गगरिया

 अजबक, उजबक, भाव गगरिया

लुढ़क, पुढ़क कर, गांव-नगरिया

पनिहारिन सा तृप्त, तृष्णा तट

तके लहरों की, मनमौजी डगरिया


भाव भूमि की, अभिनव ले तरंगें

टूटें किनारे पर आ, लंबी उमंगे

कितने फूटे घड़े, चांदनी अंजोरिया

अजबक, उजबक, भाव गगरिया


जल से तट या तट से जल है

किससे कौन, बना कब सबल है

हुंकार थपेड़ों के, तट वही नजरिया

अजबक, उजबक, भाव गगरिया


लहरों में रहता, प्रायः परिवर्तन

तट स्थायी, कोई ना हो आवर्तन

मजबूर चाह, राह पाने का जरिया

अजबक, उजबक, भाव गगरिया।


धीरेन्द्र सिंह

बुधवार, 8 दिसंबर 2021

बिपिन रावत - एक शौर्य


प्रशिक्षण महाविद्यालय को

युद्ध कौशल का

नव पाठ पढ़ाने,

नई बात बताने

चले बिपिन रावत

संग पत्नी

नव अफसर को

नव राह दिखाने,

लगी आग जब

हेलीकॉप्टर में

थे रावत बैठे

कुर्सी थी सुरक्षित

पर अर्धांगिनी भी तो

अग्नि दाह में थी मूर्छित,

भर बाहों में

कर पूर्ण प्रयास

चीख पुकार कर दरकिनार

भार्या के बन रक्षक

जीवन के अंतिम साँसों में

एक-दूजे के हो नतमस्तक,

मां भारती को

नमन जताया होगा

अग्नि प्रचंड में दबंग

हित देश की आह जताया होगा,

यह दुर्घटना भी

लिख गयी अमर कहानी

भारत के शूरवीर की जिंदगानी।


धीरेन्द्र सिंह

गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

सम्मान है

 मैंने तुमको पढ़ लिया

उम्मीद भर गढ़ दिया

मेरा अब क्या काम है

बस तुम्हें सम्मान है


तुम अधरों की नमीं

ज़िन्दगी की हो जमीं

शब्द भाव क्या धाम है

बस तुम्हें सम्मान है


तथ्य की तुम स्वरूप हो

मेरे जीवन की ही धूप हो

यहां न सुबह न शाम है

बस तुन्हें सम्मान है


पारदर्शिता मेरी तुम भ्रमित

मुझको समझना हुआ शमित

मेरी गलियों में गैरों का गुणगान है

बस तुम्हें सम्मान है


हृदय की उड़ान नव वितान

साथ उड़ने पर कैसा गुमान

मन की झोली में प्यार तापमान है

बस तुम्हें सम्मान है।


धीरेन्द्र सिंह

मंगलवार, 30 नवंबर 2021

भोर की बेला

 भावों का प्रवाह है, मन भी लिए आह

भोर की बेला सजनी, जागी कैसी चाह 


चांद भी धूमिल, सूरज ओझल, सन्नाटा

कलरव अनुगूंज नहीं पर सैर सपाटा

तुम संग युग्म तरंगित, ढूंढे कोई थाह

भोर की बेला सजनी, जागी कैसी चाह


अंगड़ाई के अद्भुत तरंग, जैसी निज बातें

कितना कुछ कर दी समाहित, क्यों बाटें

दूर बहुत है, सुगम न मिलती कोई राह

भोर की बेला सजनी, जागी कैसी चाह


तुम उभरी क्या, छुप गए सूरज-चांद

रैन बसेरा कर, जागा सुप्तित उन्माद

युग्मित भाव हमारे, भरे भोर में दाह

भोर की बेला सजनी, जागी कैसी चाह।


बरखा चूमी सड़कें, दिसंबर एक माह

भोर भींगी लपकी, शीतल हवा की बांह।


धीरेन्द्र सिंह