गुरुवार, 13 जून 2024

लाठी बनाकर

 मुझे शब्द की एक काठी बनाकर

कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर


कहता था अक्सर शब्द ही ब्रह्म है

शब्द में हों अभिव्यक्त प्रथम कर्म है

चलते बने वह चाह साथी बनाकर

कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर


उपेक्षित सा पड़ा है न वह प्रतीक्षित

लाठी तो संकट में लगती है दीक्षित

क्या मिला उन्हें संग वादी गंवाकर

कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर


ठक-ठक की आवाज से था संवाद

स्व रक्षा का है यह साथी निर्विवाद

एक दिन अस्वीकारा बकबाती बताकर

कोने में रख गए हैं लाठी बनाकर।


धीरेन्द्र सिंह

14.06.2024

10.18

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