हर दिन
नहीं हो पाता
लिखना कविता,
चाहती है प्यार
एक उन्मादी आलोडन
कभी आक्रामकता
तो कभी सिहरन,
जलाती है फिर
संवेदनाओं की बाती
और उठते
भावनाओं के धुएं
बन जाते हैं कविता
लिपट चुनिंदा शब्दों से,
किसी दिन अचानक
कभी कंधे पर तो
कभी सीने पर
लुढ़क जाती है कविता
कुछ सुनने
कुछ गुनने,
बन सखी
रहती ऊंघाती
बन अनुभूति संचिता
हर दिन
नहीं हो पाता
कविता लिखना।
धीरेन्द्र सिंह
11.09.2024
08.15
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