राष्ट्रभाषा बन न सकी है यह राजभाषा
14 सितंबर कहता क्यों सुप्त जिज्ञासा
देवनागरी लिखने की आदत न रही अब
भारत में नहीं हिंदी बनी विश्वभाषा कब
हिंदी दुकान बन कृत्रिमता की है तमाशा
14 सितंबर कहता क्यों सुप्त जिज्ञासा
हिंदी को संविधान की मिली हैं शक्ति
स्वार्थ के लुटेरे हिंदी से दर्शाते आसक्ति
कुछ मंच ऊंचे कर बढ़ाते हिंदी हताशा
14 सितंबर कहता क्यों सुप्त जिज्ञासा
झूठे आंकड़ों में उलझी हुई है यह हिंदी
फिर भी कहते हिंदी भारत की है बिंदी
बस ढोल बज रहे हिंदी दिवस के खासा
14 सितंबर कहता क्यों सुप्त जिज्ञासा।
धीरेन्द्र सिंह
14.09.2024
05.55
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें